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________________ १८३ गा० २२] हिदिविहत्तीए वड ढीए अंतर $ ३३४. एइंदिएसु सव्वपदाणं तिरिक्खोपं । एवं पुढवि-बादरपुढवि०बादरपुढविअपज्ज०-सुहुमपुढवि० - सुहुमपुढविपज्जत्तापज्जत्त-आउ.-बादराउ०बादरआउअपज्ज•-सुहुमाउ० - सुहुमआउपज्जत्तापज्जत्त-तेउ०-बादरतेउ०-बादरतेउअपज्ज०-सुहुमतेउ०-सुहुमतेउपज्जत्तापज्जत्त-वाउ०-बादरवाउ०-बादरवाउअपज्ज०सुहुमवाउ०-सुहुमवाउपज्जत्तापज्जत्त-बादरवणप्फदिपत्रेय०-तस्सेव अपज्ज-वणप्फदि०-बादरवणप्फदि-बादरवणप्फदिपज्जत्तापज्जत्त-सुहुमवणप्फदि०--मुहुमवणप्फदिपज्जत्तापज्जत्त-णिगोद०-बादरणिगोद-बादरणिगोदपज्जत्तापज्जत्त-सुहुमणिगोद०-सुहुमणिगोदपज्जत्तापज्जने ति । ३३५. सव्वविगलिंदिय० सव्वपदाणं पंचिंदियतिरिक्खभंगो । एवं बादरपुढविपज्ज०-बादरभाउपज्ज०-वादरतेउपज्ज०-बादरवाउपज्ज०-बादरवणप्फदिपत्तेयसरीरपज्जत्ता त्ति । $ ३३६. वेउव्वियमिस्स० सव्वपदाणमंतरं जह० एगसमो, उक्क० बारस मुहुत्त । आहार०-आहारमिस्स० असंखे०भागहाणि० अंतरं के० ? ज० एगसमत्रो, उक्क. वासपुधत्त । एवमकसाय-जहाक्वादसंजदे त्ति । ६३३४ एकेन्द्रियोंमें सभी पदोंकी अपेक्षा अन्तरकाल सामान्य तिर्यंचोंके समान है। इसी प्रकार पृथिवीकायिक, बादर पृथ्वीकायिक, बादर पृथिवीकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म पृथिवीकायिक, सूक्ष्म पृथिवीकायिक पर्याप्त, सूक्ष्म पृथिवीकायिक अपर्याप्त, जलकायिक, बादर जलकायिक, बादर जलकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म जलकायिक, सूक्ष्म जलकायिक पर्याप्त, सूक्ष्म जलकायिक अपर्याप्त, अग्निकायिक, बादर अग्निकायिक, बादर अग्निकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म अग्निकायिक, सूक्ष्म अग्निकायिक पर्याप्त, सूक्ष्म अग्निकायिक अपर्याप्त, वायुकायिक, बादर वायुकायिक, बादर वायुकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म वायुकायिक, सूक्ष्म वायुकायिक पर्याप्त, सूक्ष्म वायुकायिक अपर्याप्त, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर, बादर बनस्पतिकायिक प्रत्केक शरीर अपर्याप्त, वनस्पतिकायिक, बादर वनस्पतिकायिक, बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्त, बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म वनस्पतिकायिक, सूक्ष्म वनस्पतिकायिक पर्याप्त, सूक्ष्म वनस्पतिकायिक अपर्याप्त, निगोद, बादर निगोद, बादरनिगोद पर्याप्त, बादर निगोद अपर्याप्त, सूक्ष्मनिगोद, सूक्ष्मनिगोद पर्याप्त और सूक्ष्म निगोद अपर्याप्त जीवोंके जानना चाहिये। ६३३५. सभी विकलेन्द्रियोंमें सभी पदोंकी अपेक्षा अन्तरकाल पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंके समान जानना चाहिये । इसी प्रकार बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त, बादर जलकायिक पाप्त, बादर अग्निकायिक पर्याप्त, बादर वायुकायिक पर्याप्त और बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर पर्याप्त जीवोंके जानना चाहिये। ६३३६. वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंमें सभी पदवाले जीवोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल बारह मुहूर्त है। आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगियोंमें असंख्यातभागहानिवाले जीवोंका अन्तरकाल कितना है ? जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्व है। इसी प्रकार अकषायी और यथाख्यातसंयत जीवोंके जानना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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