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(सिरि-जइवसहाइरियविरइय-चुरिणसुत्तसमरिणदं
सिरि-भगवंतगुणहरभडारावइ8
कसा य पाहु डं
तस्स
सिरि-बरिसेणाइरियविरइया टीका जयधवला
तत्थ हिदिविहत्ती णाम विदिओ अत्थाहियारो)
- -- (अंताइ-मज्झरहिया जाइ-जरा-मरणणंतपोरड्डा ।
संसारलया तमहं जेण च्छिण्णा जिणं वंदे ॥) जिन्होंने आदि, मध्य और अन्तसे रहित तथा जाति, जरा और मरणरूपी अनन्त पोरोंसे व्याप्त संसाररूपी बेलको छेद दिया है उन जिनदेवको मैं ( वीरसेन स्वामी) नमस्कार करता हूँ।
विशेषार्थ-यहां संसारको बेलकी उपमा दी है । बेलका आदि भी है, मध्य भी है और
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