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________________ १७६ गा० २२] द्विदिविहत्तीए वड ढीए कालो $ ३२५. आहार० असंखे०भागहाणी. जह० एगसमो,उक्क० अंतोमु०। एवमकसा०-जहारवादसंजदे ति । आहारमिस्स० असंखे भागहाणी० जहण्णुक्क० अंतोमु० । अवगद० असंख०भागहाणी के० ? जह० एगसमो, उक्क० अंतोमु० । सेसपदा० मणुसपज्जत्तभंगो । एवं सुहुमसांपरा। $ ३२६. आभिणि-सुद०-ओहि. असंखे०भागहाणी० के० ? “सवद्धा । सेसपदा० पंचिंदयभंगो । एवमोहिदंस०-सुक्क० सम्मादिट्टि त्ति । मणपज्ज. असंखे० भागहाणी० के० १ सव्वद्धा । सेसपदा० के० ? जह० एगसमओ, उक्क० संखेजा समया । णवरि संखे भागहाणी० उक्क० श्रावलि० असंखे०भागो। एवं संजद०-सामाइय-छेदोव०-खइय० । णवरि सामाइय-छेदोव० संखेज्जभागहाणी. उक० संखज्जा समया । ९ ३२७. वेदय० असंखेजभागहाणी० के० १ सव्वद्धा । सेसपद० आभिणि०. ६३२५. आहारककाययोगियोंमें असंख्यातभागहानिवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । इसी प्रकार अकषायी और यथाख्यातसंयत जीवोंके जानना चाहिये । आहारकमिश्रकाययोगियोंमें असंख्यातभागहानिवाले जीवोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । अपगतवेदियोंमें असंख्यातभागहानिवाले जीवोंका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है । तथा इनके शेष पदोंकी अपेक्षा काल मनुष्य पर्याप्तकोंके समान जानना चाहिये । इसी प्रकार सूक्ष्मसांपरायिकसंयतों के जानना चाहिये। विशेषार्थ आहारककाययोग,विवक्षित प्रकरणमें अकषाय और यथाख्यातसंयतका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है,अतः यहाँ असंख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल उक्तप्रमाण कहा । किन्तु आहारकमिश्रकाययोगका जघन्य काल भी अन्तमुहूर्त है, अतः इसमें असंख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त ही प्राप्त होता है । अपगतवेद और सूक्ष्मसाम्परायका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है अतः इसमें असंख्यात भागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल उक्तप्रमाण बन जाता है । तथा अपगतवेद अवस्था सूक्ष्म साम्परायसंयत मनुष्योंके भी होती है, अतः इनमें सम्भव शेष पदोंका काल मनुष्य पर्याप्तकोंके समान बन जाता है। $३२६. आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानियोंमें असंख्यातभागहानिवाले जीवोंका कितना काल है ? सबैकाल है । तथा शेष पदोंकी अपेक्षा काल पंचेन्द्रियोंके समान जानना चाहिये । इसी प्रकार अवधिदर्शनवाले, शुक्ललेश्यावाले और सम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिये। मनःपर्ययज्ञानियोंमें असंख्यातभागहानिवाले जीवों का कितना काल है ? सर्वकाल है । तथा शेष पवाले जीवोंका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। इतनी विशेषता है कि संख्यातभागहानिवाले जीवोंका उत्कृष्ट काल आवलीके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। इसी प्रकार संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत और क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि सामायिकसंयत और छेदोपस्थापना संयतोंमें संख्यातभागहानिवाले जीवोंका उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। ६३२७. वेदकसम्यग्दृष्टियोंमें असंख्यातभागहानियाले जीवोंका कितना काल है ? सर्वकाल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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