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गा०२२] हिदिविहत्तीए वड ढीए पोसणं
१७१ $ ३११. सव्वपंचिंतिरिक्ख० सव्वपदा० के० खेर पो• ? लोग असंखे०भागो सबलोगो वा । एवं मणुस्सअपज्ज०-सव्वविगलिंदिय-पंचिंदियअपज्ज०बादरपुढविपज्ज०-बादरआउपज्ज०-बादरतेउपज्ज०-बादरवाउपज्ज-बोदरवणप्फदिपत्रेय पज्ज०-तसअपज्जत्तेत्ति । णवरि बादरवाउपज्जत्तएहि असंखेजभागवड्डो-हाणी-अवहि० के० खे० पोसिदं ? लोग० संख०भागो सव्वलोगो वा। मणुसतिय पंचि०तिरिक्खभंगो । णवरि असं०गुणहाणीए ओघमंगो।
३१२. देवेसु सव्वपदाणं वि० के० खे० पोसिदं ? लोगस्स असं० भागो अहणव चोदस० देसूणा। एवं सोहम्मीसाणे । भवण-वाण-जोइसि० सव्यपदा० के० खे० पो० ? लो० असंखे०भागो अधु-णवचोदसभागा वा देमणा । सणक्कुमारादि जाव सहस्सारो ति सव्वपदा० के० खे० पो० ? लोग० असंखे०भागो अहचोदस०
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विशेषार्थ-तिर्यंचों में असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थितपदवाले जीव सब लोकमें पाये जाते हैं अतः इन तीन पदवालोंका स्पर्श सब लोक बतलाया है । संख्यात भागवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि, संख्यात भागहानि और संख्यात गुणहानि विभक्तिवाले तिर्यंच जीव पाये तो लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रमें ही जाते हैं किन्तु मारणान्तिक और उपपादपदकी अपेक्षा अतीत काल में इन्होंने सब लोकका स्पर्श किया है इसलिये इनका लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोकप्रमाण स्पर्श बतलाया है। औदारिकमिश्रकाययोग आदि मूलमें गिनाई गई कुछ और ऐसी मार्गणाएं हैं जिनका स्पर्श तिर्यंचोंके समान है अतः उनके कथनको तिर्यंचोंके समान कहा। . ३११. सभी पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंमें सभी पदवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और सर्वलोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । इसी प्रकार मनुष्य अपर्याप्त, सभी विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय अपर्याप्त, बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त, बादर जलकायिक पर्याप्त, बादर अग्निकायिक पर्याप्त. बादर वायुकायिक पर्याप्त, बादर वनस्पति शरीर पर्याप्त और त्रस अपर्याप्त जीवोंके जानना चाहिये। इतनो विशेषता है कि बादर वायुकायिक पर्याप्तकोंमें असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके संख्यातवें भाग और सर्वलोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । मनुष्यत्रिकके पंचेन्द्रिय तियेंचोंके समान स्पर्श जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि इनके असंख्यात गुणहानिकी अपेक्षा स्पर्श ओघके समान है।।
१३१२. देवोंमें सभी पद्वाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमें से कुछ कम आठ और कुछ कम नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। इसी प्रकार सौधर्म और ऐशान स्वर्गके देवोंके जानना चाहिये । भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें सभी पदवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और त्रप्तनाली के चौदह भागों में से कुछ कम साढ़े तीन भाग और कुछ कम नौ भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। सनत्कुमारसे लेकर सहस्रार स्वर्गतकके देवों में सभी पदवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और प्रसनालीके चौदह भागों में से कछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। आनत, प्राणत, पारण
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