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________________ १४८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ २७०. आभिणि०-सुद०-श्रोहि० असंखे भागहाणी के० १ ज. अंतोमुहत्त, उक्क० छावहिसागरो० देसूणाणि । तिण्णि हाणी अोघं । एवमोहिदंससम्मादि० । मणपज्ज० असंखे०भागहाणी जह० एयसमो, उक्क. पुव्वकोडी देमूणा । तिण्णि हाणी ओघं । एवं संजद० । सामाइय-छेदो०संजदाणमेवं चेव । णवरि संखेजभागहाणीए कालो जहण्णुक्क० एगसमत्रो । परिहार-संजदासंजद० असंखे०भागहाणी जह० अंतोमुहुर्त, उक्क० सगहिदी । संखे०भागहाणी० जहण्णुक० एगसमओ। सुहुम० अवगदवेदभंगो । असंजद० णवुसयभंगो। णवरि असंखेजभागहाणीए कालो जह० एगसमो, उक्क० तेत्तीसं सागरो० सादिरेयाणि । असंख०गुणहाणीवि० रात्थि । चक्खु० तसपज्जत्तभंगो। णवरि संखे०भागवड्ढी जहण्णुक्क० एगसमो। २७१. किण्ह-णील-काउले० असंजदभंगो। णवरि असंखे० भागहाणीए जह० एगसमो, उक्क० सग हिदी देसूणा । तेउ० सोहम्मभंगो। पम्म० सणक्कुमारभंगो । सुक्क० असंखे०भागहाणीए जह० एगसमओ, उक्क० तेत्तीसं सागरो० सादिरेयाणि । तिण्णि हाणी ओघं । एवं खइय० । णवरि असंखे० भागहाणी ज० २७०. आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंके असंख्यात भागहानिका कितना काल है ? जघन्य काल अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट काल कुछ कम छयासठ सागर है। तथा तीन हानियोंका काल ओघके समान है। इसी प्रकार अवधिदर्शनी और सम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिए । मनःपर्ययज्ञानी जीवोंके असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल कुछ कम एक पूर्वकोटि है। तथा तीन हानियोंका काल ओघके समान है। इसी प्रकार संयत जीवोंके जानना चाहिये। सामायिकसंयत और छेदोपस्थापनासंयत जीवोंके भी इसी प्रकार जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इनके संख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। परिहारविशुद्धिसंयत और संयतासंयत जीवोंके असंख्यातभागहानिका जघन्य काल अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी स्थितिप्रमाण है। तथा संख्यात भागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। सूक्ष्मसांपरायिकसंयत जीवोंके अपगतवेदियोंके समान जानना चाहिये। असंयतोंके नपुंसकवेदियोंके समान जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि इनके असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर है। असंयतोंके असंख्यातगुणहानि नहीं पाई जाती है। चक्षदर्शनवाले जीवोंके सपर्याप्तकोंके समान जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि इनके संख्यातभागवृद्धिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। ६ २७१. कृष्ण, नील और कापोत लेश्यावाले जीवोंके असंयतोंके समान जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इनके असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल कुछ कम अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है। पीतलेश्यावाले जीवोंके सौधर्म कल्पके समान जानना चाहिये । पद्मलेश्यावाले जीवोंके सानत्कुमार कल्पके समान जानना चाहिये । शुक्ल लेश्यावाले जीवों के असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर है। तथा तीन हानियोंका काल अोधके समान है। इसी प्रकार क्षायिकसम्यग्दृष्टि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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