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§ २६७. वेदारणुवादेण इत्थि० तिण्णि बड्डी० दो हाणी० अवद्वि० णिरघं । असंखे ० भागहाणी के ० १ ज० एगसमत्रो, उक्क० पणवण्णपलिदोवमाणि देणाणि । असंखे० गुणहाणी के ० १ जहण्णुक्क० एगसमओ । एवं पुरिस० । णवरि असंखे ० भागहाणी ओघं । णव स० तिण्णि वड्ढी संखेज्जगुणहाणी असंखे० गुणहाणी अवडा० घं । संखे० भागहाणी जहरणुक० एगसमो 1 असंखे० भागहाणी० जह० एगसमओ, उक्क० तेत्तीस सागरोवमाणि देणाणि । अवगद ० असंखे० भागहाणी के ० १ जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमु० । संखे० भागहाणी संखे० गुणहाणी श्रघं । $ २६८. चत्तारिकसा० तिष्णि वड्ढी तिण्णि [ हाणी ] असंखेज्जगुणहाणी वाणं सगभंगो। णवर असंखे० भागहाणी के० १ जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमु० । लोभकसाय० असंखे० भागहाणी श्रघं ।
$ २६६. मदि - सुदाण्णारण० तिण्णि वड्ढी तिष्णि हाणी अवद्वा० तिरिक्खोघं । वर असंखे० भागहाणी जह० एयसमत्रो, उक्क० एक्कत्तीस सागरोमाणि सादिरेयाणि । [ एवं मिच्छाइद्वीणं ।] विहंग० सत्तमपुढविभंगो । वरि असंखे ० भागहाणी जह० एगसमओ, उक्क० एक्कत्तीस सागरोवमाणि देणाणि ।
$ २६७. वेदमार्गंणाके अनुवाद से स्त्रीवेदियों में तीन वृद्धियों, दो हानियों और अवस्थित विभक्ति काल सामान्य नारकियों के समान है । तथा असंख्यात भागहानिका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल कुछ कम पचवन पल्य है । तथा असंख्यातगुणहानिका कितना काल है ? जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय है । 'इसी प्रकार पुरुषवेदियोंके जानना चाहिए | इतनी विशेषता है कि इनके असंख्यात भागहानिका काल ओघके समान है । नपुंसकवेदियों में तीन वृद्धियों, संख्यातगुणहानि, असंख्यातगुणहानि और अवस्थितविभक्तिका काल ओघ के समान है । तथा संख्यात भागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । तथा असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्टकाल कुछ कम तेतीस सागर है । अपगतवेदियों में असंख्यात भागहानिका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। तथा संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका का घ समान है ।
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$ २६८. क्रोधादि चारों कषायवाले जीवों में तीन वृद्धियों, तीन हानियों, असंख्यात हान और अवस्थितविभक्तिका काल नपुंसकवेदियों के समान है । इतनी विशेषता है कि इनके असंख्यात भागहानिका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। तथा लोभकषायवाले जीवोंके असंख्यात भागहानिका काल ओघ के समान है । $ २६६. मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंके तीन वृद्धियों, तीन हानियों और अवस्थितविभक्तिका काल सामान्य तिर्यञ्चों के समान है । इतनी विशेषता है कि इनके असंख्यात भागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल साधिक इकतीस सागर है । इसी प्रकार मिध्यादृष्टियों के जानना चाहिये । विभंगज्ञानियोंके सातवीं पृथिवीके समान जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इनके असंख्यात भागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल कुछ कम इकतीस सागर है।
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