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________________ गा० २२] द्विदिविहत्तीए वड ढीए कालो १४५ पलिदो० असंखे०भागो। दो हाणी केव० ? जहएणुक्क० एगसमओ। अवहि० ओघं । एवं बादरेइंदिय-बादरइदियपज्जत्तापज्जत्त-मुहमेई दिय-महुमेइदियपज्जत्तापज्जत्ताणं । णवरि असंखे०भागहाणी के• ? जह० एगसमो, उक्क० बादरेइंदिय-मुहुमेइ दिएसु पलिदो० असंखे०भागो। बादरेइ दियपज्जरोसु संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । अण्णत्थ अंतोमुहु । $ २६४. विगलिंदिएसु असंखेज्जभागवडी अोघं । संखे भागवडी दो हाणी० अवहिदाणं णिरोघभंगो। असंखेज्जभागहाणी केव० ? जह० एगसमओ, उक्क० सगहिदी । पंचिदिय०-पर्चि०पज्ज. मणसभंगो। णवरि असंखे०भागहाणी० ओघं। पंचिंदियअपज्ज०-तसअपज्ज. पंचिंदियतिरिक्ख अपज्जत्तभंगो । णवरि तसअपज्ज० संखे०भागवडी संखे०गुणवडी० मोघं । २६५. पंचकाय-बादर-सुहुमाणमेइदियभंगो । तेसिं पज्जत्तापज्जत्ताणमेवं चेव । वरि असंख०भागहाणी० के० ? ज० एगसमओ, उक्क० सगहिदी। AAAAAAAAAAAAAAAA काल है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। दो हानियोंका कितना काल है ? जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय है। तथा अवस्थितविभक्तिका काल ओघके समान है। इसी प्रकार बाहर एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त, बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त, सूक्ष्म एकेन्द्रिय, सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त और सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंके जानना चाहिये। किन्तु इतनी विशेषता है कि इनके असंख्यातभागहानिका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल बादर एकेन्द्रिय और सूक्ष्म एकेन्द्रियोंमें पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है। बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकोंमें संख्यात हजार वर्ष है तथा इनके अतिरिक्त शेष बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त, सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त और सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंमें अन्तमुहूर्त काल है। ___$ २६४. विकलेन्द्रियोंमें असंख्यात भागवृद्धिका काल ओघके समान है । संख्यात भागवृद्धि, दो हानि और अवस्थितविभक्तिका काल सामान्य नारकियों के समान है। तथा असंख्यातभागहानिका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थिति प्रमाण है । पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय पर्याप्तकों के मनुष्योंके समान जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि इनके असंख्यातभागहानिका काल ओघके समान है । पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक और त्रस अपर्याप्तकों के पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंके समान जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि बस अपर्याप्तकोंके संख्यातभागवृद्धि और संख्यातगुणवृद्धि का काल ओके समान है। $ २६५ पांचों स्थावरकाय, पाँचों स्थावरकाय बादर और पाँचों स्थावरकाय सूक्ष्म जीवोंके एकेन्द्रियोंके समान जानना चाहिये। तथा पाँचों स्थावरकाय बादर और सूक्ष्मोंके जो पर्याप्त और अपर्याप्त भेद हैं उनके भी इसी प्रकार जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इनके असंख्यात भागहानिका काल कितना है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थिति प्रमाण है। - १६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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