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________________ १३२ जयघवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ ६२३६. कम्मइय० उक्क० वड्ढी कस्स ? अण्णद० जेण पंचिंदियसण्णिणा विग्गहगदीए वट्टमाणेण तप्पाअोग्गहिदिसंतकम्मादो तप्पाओग्गउक्कस्सहिदिबंधी पबद्धो तस्स उक्क० वड्ढी । उक्क० हाणी कस्स ? अण्णदरो जो चदुगदिओ उक० डिदिसंतकम्मिओ हिदिकंदयघादमाढविय विदियविग्गहे हिदिसंतकम्मस्स हिदिखंडए पादिदे तस्स उक्क० हाणी । उक्क० अवहाणं कस्स ? अण्ण. जो एइदियो तप्पाओग्गहिदि तकम्मादो वढिदण अवहिदो तस्स उक्क० अवहाणं । एवमणाहारीणं । ___२३७. अवगद० उक्क० हाणी कस्स ? अण्ण० इत्थि-णवूस वेदखवगस्स पढमे हिदिखंडए हदे तस्स उक्कस्सिया हाणी । मदि०-सुद०-ओहि० उक्क० हाणी कस्स ? अण्णदरो उक्कस्सहिदिसंतकम्मिश्रो तेण उक्कस्सए हिदिखंडए पादिदे तस्स उक्क हाणी । एवं ओहिदस०-सुक्क०-सम्मादि०-वेदय दिहि त्ति । मणपज्ज. उक्क० हाणी कस्स ? अण्णदरस्स जेण सागरोवमपुधत्तमेत्तमुक्कस्सहिदिखंडयं पादिदं तस्स उक० हाणी । एवं संजद-सामाइय-छेदो०-खइय०दिहि-परिहार-संजदासंजद०। सुहुमसांप० उक्क० हाणी कस्स ? अण्ण० खवगस्स चरिमडिदिरखंडए पादिदे तस्स उक्क हाणी। २३८ उवसम० उक्क. हाणी कस्स ? अण्ण. अणंताणु विसंजोयणापढम २३६. कार्मणकाययोगिया में उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? विग्रहगतिमें विद्यमान जो पंचेन्द्रिय संज्ञी जीव तद्योग्य स्थितिसत्त्ववाले कमके साथ तद्योग्य उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करता है उस कार्मणकाययोगीके उत्कृष्ट वृद्धि होती है। उत्कृष्ट हानि किसके होती है? जिसके मोहनीयकर्मका उत्कृष्ट स्थितिसत्त्व है ऐसा चारों गतिका जीव स्थितिकाण्डकघातको आरम्भ करके दूसरे विग्रह में जब स्थितिसत्तावाले कर्मके स्थितिखण्डका घात करता है तब उस कार्मणकाययोगी जीवके उत्कृष्ट हानि होती है। उत्कृष्ट अवस्थान 'किसके होता है ? जो एकेन्द्रिय तद्योग्य स्थितिसत्त्व से बढ़ाकर अवस्थित है उसके उत्कृष्ट अवस्थान होता है। इसी प्रकार अनाहारक जीवोंके जानना चाहिये । ६२३७ अपगतवेदियोंमें उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका क्षपक जो कोई एक जीव प्रथम स्थितिखण्डका घात करता है उसके उत्कृष्ट हानि होती है। आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? मोहनीय कर्मकी उत्कृष्ट स्थितिकी सत्तावाला जो कोई एक जीव उत्कृष्ट स्थितिकाण्डकका घात करता है उसके उत्कृष्ट हानि होती है। इसी प्रकार अवधिदर्शनी, शुक्ललेश्यावाले, सम्यग्दृष्टि और वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिये । मनःपर्ययज्ञानियोंमें उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जिसने सागरपृथक्त्व प्रमाण उत्कृष्ट स्थितिकाण्डकका घात किया है उसके उत्कृष्ट हानि होती है। इसी प्रकार संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, परिहारविशुद्धिसंयत और संयतासंयत जीवोंके जानना चाहिये । सूक्ष्मसांपरायिक संयतोंमें उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो कोई एक क्षपक अन्तिम स्थितिकाण्डकका घात करता है उसके उत्कृष्ट हानि होती है। ६२३८ उपशमसम्यग्दृष्टियोंमें उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो कोई एक जीव अनन्तानु rammwww AAAAAM Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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