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________________ गा० २२] हिदिविहत्तीए पदणिक्खेवे सामित्त १३१ २३३. एइदिय० उक्कस्सवढि-उक्कस्सअवहाणाणं पंचिंदियतिरिक्वअपज्जत्तभंगो । उक्क० हाणी कस्स ? अण्णदरो जो पंचिंदिरो उक्कस्सहिदिघादमकाऊण एइदिएसु उववण्णो तेण पढमहिदिखंडए पादिदे तस्स उक्कस्सिया हाणी । एवं बादरेइंदिय-बादरेइंदियपज्ज०-पुढवि० बादरपुढवि-बादरपुढविपज -आउ०-बादरआउ०-बादराउपज्ज-वणप्फदि-बादरवणप्फदि -बादरवणप्फदिपचेयसरीरपज्जतअसण्णि त्ति । ६ २३४. ओरालियमिस्स उक्क वढि-अवहा० पंचिंतिरि०अपज्जत्तभंगो । उक्क० हाणी कस्स ? अण्णदरो जो देवो रइरो वा उक्कस्सहिदिसंतकम्मिओ हिदिघादमकाऊण ओरालियमिस्सजोगेसु उववण्णो तेण उक्कस्सहिदिखंडए घादिदे तस्स उक्क हाणी। .... $ २३५. वेउव्वियमिस्स० उक्क वढि-अवट्ठाणाणं पंचिं तिरि अपज्जत्त-. भंगो। उक्क० हाणी कस्स ? अण्णदरो जो तिरिक्खो मणुस्सो वा उक्कस्सहिदिसंतकम्मिश्रो हिदिघादमकादूण वेउव्वियमिस्स० उववण्णो तेण उक्कस्सए हिदिखंडए पादिदे तस्स उक्क० हाणी । आहार०-आहारमिस्स० उक० हाणी कस्स ? अण्णदरस्स अद्धहिदि गलेमाणसंतस्स उक्क० हाणी। एवमकसाय-जहाक्खाद०-सासण दिहि त्ति। ६२३३. एकेन्द्रियों में उत्कृष्ट वृद्धि और उत्कृष्ट अवस्थानके स्वामित्वका कथन पंचेन्द्रिय तिथंच अपर्याप्तकोंके समान जानना चाहिये । एकेन्द्रियोंमें उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो कोई एक पंचेन्द्रिय तिथंच उत्कृष्ट स्थितिका घात न करके एकेन्द्रियोंमें उत्पन्न होकर वहाँ प्रथम स्थिति काण्डकका घात करता है उसके उत्कृष्ट हानि होती है। इसी प्रकार बादर एकेन्द्रिय, बादर . एकेन्द्रिय पर्याप्तक, पृथिवीकायिक, बादर पृथिवीकायिक, बादर पृथिवीकायिक पर्याप्तक, जलकायिक, बादर जलकायिक, बादर जलकायिक पर्याप्तक, वनस्पतिकायिक, बादर वनस्पतिकायिक, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त और असंज्ञा जीवोंके जानना चाहिये। २३४. औदारिकमिश्रकाययोगियोंमें उत्कृष्ट वृद्धि और उत्कृष्ट अवस्थानके स्वामित्वका कथन पंचेन्द्रिय तियेच अपर्याप्तकोंके समान जानना चाहिये । औदारिकमिश्रकाययोगियोंमें उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? मोहनोय कर्मकी उत्कृष्ट स्थितिकी सत्तावाला जो कोई एक देव या नारकी स्थितिघात न करके औदारिकमिश्रकाययागियोंमें उत्पन्न होकर वहाँ उत्कृष्ट स्थितिकाण्डकका घात करता है उसके उत्कृष्ट हानि होती है। २३५ वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंमें उत्कृष्ट वृद्धि और उत्कृष्ट अवस्थानके स्वामित्वका कथन पंचेन्द्रिय तिथंच अपर्याप्तकों के समान जानना चाहिये । वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंमें उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? मोहनीय कर्मकी उत्कृष्ट स्थितिकी सत्तावाला जो कोई एक तियेच या मनुष्य स्थितिघात न करके वैक्रियिकमिश्र काययोगियोंमें उत्पन्न होकर वहाँ उत्कृष्ट स्थितिखण्डका घात करता है उसके उत्कृष्ट हानि होती है। आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगियोंमें उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो अद्धा स्थितिकी निर्जरा करता हुआ विद्यमान है उसके उत्कृष्ट हानि होती है। इसी प्रकार अकषायी, यथाख्यातसंयत और सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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