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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [द्विदिविहत्ती मण-पंचवचि०-इत्थि०-पुरिस०-विहंग०-चक्खु०-सण्णि त्ति । वेउब्बिय० भुज० अप्प अवहि० के० खे० पो० ? लोग० असंखे० भागो अह तेरह चोदस भागा वा देसूणा।
$ २११. आभिणी० सुद० अोहि० अप्पद० के० खे० पो० ? लोग० असंखे० भागो अह चोदस० देसूणा । एवमोहिदंस०-पम्मले०-सम्मादि०-खइय-वेदय-उवसम०-सम्मामिच्छादिहि त्ति ।'
२१२. संजदासंजद० अप्पद० के० खेत्तं पो० ? लोग० असंखे०भागो छ चोद्दस० देसणा। एवं सुक्क० लेस्सा। तेउ० सोहम्मभंगो । सासण. अप्पद० के० खे० पो० ? लोग० असंखे० भागो अट्ट बारह चोदस० देसणा ।
एवं पोसणाणुगमो समत्तो। किया है। इसी प्रकार पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, विभंगज्ञानी, चक्षदर्शनी और संज्ञी जीवोंके जानना चाहिये। वैक्रियिककाययोगी जीवोंमें भुजगार, अल्पतर और अवस्थित स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यतातवें भाग क्षेत्रका तथा त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ और कुछ कम तेरह भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है।
६२११. मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें अल्पतर स्थिति विभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे झुछ कम आठ भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। इसी प्रकार अवधिदर्शनी, पद्मलेश्यावाले सम्यग्दृष्टि, क्षायिक सम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके जानना चाहिये।
९२१२. संयतासंयतोंमें अल्पतर स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्र का और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। इसी प्रकार शुक्ललेश्यावाले जीवोंके जानना चाहिये। पीतलेश्यावाले जीवोंके सौधर्मस्वर्गके समान स्पर्श है। सासादनसम्यग्दृष्टि अल्पतर स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंमें कुछ कम आठ तथा कुछ कम बारह भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है।
विशेषाथे-प्रोबसे भुजगार, अल्पतर और अवस्थित स्थितिवालोंका क्षेत्र सब लोक बतलाया है स्पर्शन भी इतना ही है अतः इनके स्पर्शको क्षेत्रके समान कहा। इसी प्रकार तिर्यंच आदिकमें स्पर्श जाननेकी सूचना की है। इसका यह अभिप्राय है कि उन मार्गणाओंमे, जिनका जितना क्षेत्र है स्पर्श भी उतना ही है। हां, सामान्य नारकी आदि कुछ ऐसी मार्गणाएँ हैं जिनका स्पर्श क्षेत्र से भिन्न है। अतः उनका पृथक् कथन किया। फिर भी जीवट्ठाणके स्पर्शन अनुयोग द्वारमें उन मार्गणाओंमेंसे जिसका जितना स्पर्श बतलाया है वही यहाँ उस उस मार्गणामें भुजगार
आदि सम्भव पदोंकी अपेक्षा प्राप्त होता है। जो मूलमें बतलाया ही है। अब अमुक मागणामें अमुक स्पर्श क्यों प्राप्त होता है इसका विशेष खुलासा सर्शन अनुयोगद्वारसे जान लेना चाहिये ।
इस प्रकार स्पर्शनानुगम समाप्त हुआ।
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