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________________ गा० २२] हिदिविहत्तीए भुजगारे परिमाणाणुगमो ११५ मदिसुदअण्णाण-असंजद-अचक्खु-तिण्णिले०-भवसि०-अभवसि०-मिच्छादि०असण्णि०-आहारि-अणाहारि त्ति । . २०१. आदेसेण णेरइएसु भुज० अप्पद० अवहि० केत्ति० १ असंखेजा । एवं सत्तसु पुढवीसु सव्वपंचिंतिरिक्ख-मणुस-मणुसअपज्ज०-देव--भवणादि जाव सहस्सार-सव्वविगलिंदिय-सव्वपंचिं०-चत्तारिकाय-बादरवणप्फदिपत्तेय०-पज्जत्तापज्जत्तसव्वतस०-पंचमण०-पंचवचि०-वेउव्विय०-वेउवियमिस्स-इत्थि -पुरिस०-विहंग०चक्खु०-तेउ०- पम्म०-सण्णित्ति ।। २०२. मणुसपज-पणुसिणी. भुज० अप्पद० अवहि० केत्ति ? संखेजा । , आणदादि जाव अवराइदत्ति अप्पदर० केत्ति० १ असंखेजा । एवमाभिणि०-सुद०-ओहि०-संजदासंजद०-ओहिदंस०-सम्मादि०-खइय०-वेदयउवसम०-सासण-सम्मामिच्छादिहि त्ति । सव्व० अप्पद० केत्तिया ? संखेजा। एवमाहार-आहारमिस्स०-अवगद०-अकसा०-प्रणपज्ज०-संजद०-सामाइयछेदो० परिहार०-सुहु०-जहाक्खादसंजदेत्ति । सुस्क० आभिणि भंगो। सभी निगोद, काययोगो, औदारिककाययोगी, औदारिक मिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी नपुंसकवेदी, क्रोधादि चारों कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, अचतुदर्शनी, कृष्णादि तीन लेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, असंज्ञी, आहारक और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिए। ___२०१. आदेशकी अपेक्षा नारकियोंमें भुजगार, अल्पतर और अवस्थित स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। इसी प्रकार सातों पृथिवियोंके नारकी, सभी पंचेन्द्रिय तिर्थञ्च सामान्य मनुष्य, मनुष्य अपर्याप्त, सामान्यदेव, भवनवासियोंसे लेकर सहस्रार कल्पतकके देव, सभी विकलेन्द्रिय, सभी पंचेन्द्रिय, पृथिवीकायिक आदि चार स्थावरकाय, बादर बनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर, बादर बनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर पर्याप्त, बादर बनस्पतिका यिक प्रत्येक शरीर अपर्याप्त, सभी त्रस, पांचों मनोयोगी, पांचों बचनयोगी, वैक्रियिककाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, स्त्रोवेदी, पुरुषवेदी, विभंगज्ञानी, चक्षुदर्शनी, पीतलेश्यावाले, पद्मलेश्यावाले और संज्ञी जोवोंके जानना चाहिये। ६२०२. मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनियोंमें भुजगार, अल्पतर और अवस्थित स्थितिविभक्ति वाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। आनत कल्पसे लेकर अपराजित कल्पतकके देवोंमें अल्पतर स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। इसी प्रकार मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, संयतासंयत, अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसन्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके जानना चाहिये । सर्वार्थसिद्धिमें अल्पतर स्थितिविभक्तिवाले देव कितने हैं ? संख्यात हैं। इसी प्रकार आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, अपगतवेदी, अकषायी, मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिक संयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसांपरायिकसंयत, और यथाख्यातसंयत जीवोंके जानना चाहिये । शुक्ललेश्यावाले जीवोंका कथन मतिज्ञानी जीवोंके समान है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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