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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ हिदिविहत्ती ३
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दिय - सव्वपंचिंदिय-पंचकाय ० - सव्वतस-पंचमण० - पंचवचि ० - काय जोगि० - ओरालिय०ओरालियमिस्स - वेडव्विय ० - वेड० मिस्स ० - कम्मइय - तिण्णिवेद – चत्तारिकसाय-मदिसुदअण्णाण - विहंग० - संजद ० - चक्खु ० - अचक्खु ० - पंचले ० - भवसि ० - अभवसि ० मिच्छादि०-सण्णि० - असण्णि० - आहारि - अणाहारि त्ति ।
$ १६६. मणुसपज्जत्तमणुसिणीसु भुज ० सव्वजी० के० भागो ? संखे० भागो । एवमवद्विदि० । अप्पदर • संखेज्जा भागा। आणदादि जाव सव्वा त्ति णत्थि भागाभागं । एवमाहार० - आहारमिस्स ० - अवगद ० - अकसा० आभिणि० - सुद० - ओहि ० मणपज्ज० - संजद ० - सामाइयछेदो ० - परिहार० - सुहुम ० - जहाक्खाद ० -संजदासंजद० -ओहिदस०- सुक्क०- सम्मादि - - खइय० - वेदय ० -उवसम० -स् - सासण० - सम्मामि० । एवं भागाभागागमो समत्तो ।
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२००. परिमाणागमेण दुविहो णिद्द सो श्रघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण भुज० अप्पद० अवद्वि० केत्ति ० १ अनंता । एवं तिरिक्ख सव्वएइंदिय - सव्ववणफदिसव्वणिगोद ० - काय जोगि० - ओरालि ० - ओरालिय मिस्स-कम्मइय-णवंस ० - चत्तारिकसाय
इसी प्रकार सातों पृथिवियोंके नारकी, सभी तिर्यंच, मनुष्य, मनुष्य अपर्याप्त, सामान्य देव, भवनवासियोंसे लेकर सहस्रार कल्प तकके देव, सभी एकेन्द्रिय, सभी विकलेन्द्रिय, सभी पंचेन्द्रिय, पांचों स्थावरकाय, सभी त्रसकाय, पांचों मनोयोगी, पांचों बचनयोगी, काययोगी, श्रदारिककाययोगी, दारिकमिश्र काययोगी, वैक्रियिककाययोगी, वैक्रियिक मिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, तीनों वेदवाले, क्रोधादि चारों कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, विभंगज्ञानी, असंयत, चक्षुदर्शनी, अचक्षुदशैनी, कृष्णादि पांच लेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, संज्ञी, असंज्ञी, आहारक और अनाहारक जीवों के जानना चाहिये ।
१६. मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनियों में भुजगार स्थितिविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भाग हैं ? संख्यातवें भाग हैं। इसी प्रकार अवस्थित स्थितिविभक्तिवाले संख्यातवें भाग हैं। तथा अल्पतर स्थितिविभक्तिवाले संख्यात बहुभाग हैं । नत कल्पसे लेकर सवार्थसिद्धि पर्यन्त जीवोंके भागाभाग नहीं हैं; क्योंकि वहां एक अल्पतर पद ही पाया जाता है । इसी प्रकार आहारककाययोगी, आहारक मिश्रकाययोगी, अपगतवेदी, अकषायी, मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मन:पर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापना संयत, परिहारविशुद्धिसंयत, सूक्ष्म सांपरायिकसंयत, यथाख्यातसंयत, संयतासंयत, अवधिदर्शनी, शुक्ललेश्यावाले, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों के जानना चाहिये ।
इस प्रकार भागाभागानुगम समाप्त हुआ ।
६ २००. परिमाणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । उनमें से शोधकी अपेक्षा भुजगार, अल्पतर और अवस्थितस्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? अनन्त हैं । इसी प्रकार सामान्य तिर्यञ्च, सभी एकेन्द्रिय, सभी वनस्पतिकायिक,
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