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गा २२]
हिदिविहत्तीए भुजगारे कालो पंचिं०अपज्ज।
६ १७७. मणुसतिय० भुज०-अवहि० णिरओघं । अप्पद० जह० एगसमो, उक्क० तिण्णि पलिदोवमाणि पुव्वकोडितिभागेण सादिरेयाणि । मणुसिणीसु अंतोमुहुत्तेण सादिरेयाणि । मणुसअपज० भुज० जह० एयसमो, उक्क० बे समया । अप्पद०-अवहि० जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमहत्तं ।
१७८. देवेसु भुज०-अवहि० गिरोघं । अप्पद० जह० एगसमो, उक्क० काल अन्तर्मुहूर्त है । इसी प्रकार पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक जीवों के जानना चाहिए ।
विशेषार्थ-जिस तिर्यंचने पूर्व पर्यायमें अन्तर्मुहूर्त तक अल्पतर स्थितिका बन्ध किया। पश्चात् मरकर तीन पल्यकी आयुके साथ उत्तम भोगभूमिमें उत्पन्न हो गया उसके अल्पतर स्थितिका उत्कृष्टकाल अन्तमुहूर्त अधिक तीन पल्य पाया जाता है। सामान्य तिर्यंचोंमें शेष कथन
ओघके समान है। यदि कोई अन्य इन्द्रियवाला जीव पंचेन्द्रिय तिर्यंचत्रिकमें उत्पन्न हुआ तो उसके पहला समय अद्धाक्षयसे,दूसरा समय शरीरको ग्रहण करनेसे और तीसरा समय संक्लेशक्षयसे भुजगार स्थितिका प्राप्त होता है, अतः इनमें भुजगार स्थितिका उत्कृष्टकाल तीन समय कहा ।
शेष कथन सुगम है । पंचेन्द्रिय तिर्यंच लब्ध्यपर्याप्तक और पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका उत्कृष्टकाल • अन्तर्मुहूर्त है अतः इनके अल्पतर और अवस्थित स्थितिका उस्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त कहा। शेष' कथन सुगम है।
६१७७. सामान्य मनुष्य,पर्याप्त मनुष्य और मनुष्यनी इन तीन प्रकारके मनुष्योंमें भुजगार और अवस्थित स्थितिविभक्तिका काल सामान्य नारकियोंके समान है। अल्पतर स्थितिविभक्तिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पूर्वकोटिके त्रिभागसे अधिक तीन पल्य है । मनुष्यिनियोंमें अल्पतर स्थितिविभक्तिका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त अधिक तीन पल्य है। मनुष्य अपर्याप्तकोंमें भुजगार स्थितिविभक्तिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल दो समय है । तथा अल्पतर और अवस्थित स्थितिविभक्ति का जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है।
विशेषार्थ-सामान्य मनुष्य, पर्याप्त मनुष्य और मनुष्यिनियोंमेंसे एक पूर्वकोटिकी आयुवाले जिस मनुष्यने त्रिभागके शेष रहनेपर मनुष्यायुका बन्ध करके पश्चात् क्षायिकसम्यग्दर्शनको प्राप्त कर लिया है वह मरकर उत्तम भोगभूमिमें तीन पल्यकी आयुके साथ उत्पन्न होता है। इसके त्रिभागसे लेकर अन्त तक निरन्तर स्थितिसत्त्वसे कम स्थितिका ही बन्ध होता रहता है अतः अल्पतर स्थितिका उत्कृष्टकाल पूर्वकोटिका त्रिभाग अधिक तीन पल्य प्राप्त होता है। किन्तु सम्यग्दृष्टि जीव मरकर स्त्रीवेदी नहीं होता अतः मनुष्यिनियोंके अल्पतर स्थितिका काल अन्तमुहूर्त अधिक तीन पल्य ही प्राप्त होगा। यहां अन्तर्मुहूतसे पूर्व पर्यायके और तीन पल्यसे उत्तम भोगभूमिके अल्पतर स्थितिके कालका ग्रहण करना चाहिये । लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्यका उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है, अतः इसके अल्पतर और अवस्थितस्थितिका उत्कृष्टकाल अन्तमुहूर्त कहा। शेष कथन सुगम है।
१७८. देवोंमें भुजगार और अवस्थित स्थितिविभक्तिका काल सामान्य नारकियों के
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