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________________ हर जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ द्विदिविहत्ती ३ अवगद ० मोह० ज० ज० एगसमयो, उक्क० मासा । एवमजहणहिदी वि वत्तव्वं । एवं सुहुमसंप० । कोह० - माण ० - माय० पुरिस० भंगो । अकसाय ० उक्कस्सभंगो | एवं जहाक्खाद० वत्तव्वं । ज्वसम० - [सासण •] सम्मामि० उक्कस्सभंगो । एवमंतराणुगमो समत्तो । 1 विभक्तिवाले जीवोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक एक वर्ष है । तथा तीनों ही वेदवाले जीवों में अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका अन्तरकाल नहीं है। अपगतवेदियों में मोहनीयकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल छह महीना है । तथा इनके अजघन्य स्थितिविभक्तिकी अपेक्षा भी इसी प्रकार कथन करना चाहिये । इसी प्रकार सूक्ष्मसां परायिकसंयत जीवोंके कहना चाहिये । क्रोध, मान और माया कषायवाले जीवोंके पुरुषवेदियोंके समान कहना चाहिये । अकषायी जीवोंके इनके उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंके समान अन्तरकाल है । इसी प्रकार यथाख्यातसंयत जीवोंके कहना चाहिये । तथा उपशमसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके इनके उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंके समान अन्तरकाल है । विशेषार्थ - जब एक समय के अन्तरसे जीव क्षपकश्रेणीपर चढ़ते हैं तब जघन्य स्थितिका जघन्य अन्तरकाल एक समय पाया जाता है और जब छह महीना के अन्तरसे जीव क्षपकश्रेणीपर चढ़ते हैं तब जघन्य स्थितिका उत्कृष्ट अन्तर छह महीना पाया जाता है । ओघसे अजघन्य स्थितिका अन्तर नहीं है यह तो स्पष्ट ही है । सामान्य मनुष्य आदि और जितनी मार्गणाएं गिनाई हैं उनमें भी इसी प्रकार अन्तर समझना चाहिये, क्योंकि क्षपकश्रेणी में वे सब मार्गणाएं सम्भव हैं अतः उनमें जघन्य स्थितिका अन्तर ओघ के समान बन जाता है । और वे मार्गणाएं निरन्तर हैं अतः उनमें अजघन्य स्थितिका अन्तर नहीं पाया जाता । किन्तु अवधिज्ञानी जीव यदि क्षपकश्रेणी पर न चढ़ें तो वर्षपृथक्त्व काल तक नहीं चढ़ते हैं अतः इनमें जघन्य स्थितिका उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व कहा है । सामान्य नारकी आदि कुछ ऐसी मार्गणाएं हैं जिनमें जघन्य और अजघन्य स्थितिका अन्तर इनकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके समान है । सामान्य तिर्यंच आदि कुछ ऐसी मार्गणाएं हैं जिनमें जघन्य और अजघन्य स्थितिवाले जीव सर्वदा पाये जाते हैं, अतः इनमें उनका अन्तरकाल सम्भव नहीं । मनुष्यिनी, मन:पर्ययज्ञानी, स्त्रीवेद और नपुंसकवेद इन मार्गणाओं में क्षपकश्रेणीका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्ष पृथक्त्व है, अतः इनमें जघन्य स्थितिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्ष पृथक्त्व कहा। यही बात अवधिदर्शनकी है । पर इनमें अजघन्य स्थितिका अन्तरवाल नहीं पाया जाता । लब्ध्यपर्याप्तकमनुष्य, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, आहारककाययोगी इनकी जघन्य और अजघन्य स्थितिका अन्तर इनकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थिति के अन्तर के समान है उससे इसमें कोई विशेषता नहीं हैं । पुरुषवेद में कमसे कम एक समय तक और अधिक से अधिक साधिक एक वर्ष तक क्षपकश्रेणी नहीं प्राप्त होती, अतः इसमें जघन्य स्थितिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक एक वर्ष कहा है । किन्तु इसमें जघन्य स्थितिका अन्तर नहीं है क्योंकि यह निरन्तर मार्गणा है । मोह सत्कर्मवाले क्षपक अपगतवेद और क्षपक सूक्ष्म सम्पराय संयम की प्राप्तिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है अतः इनमें जघन्य और अजघन्य स्थितिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना कहा । क्रोध, मान और माया कषायका कथन पुरुषवेदके समान है, क्योंकि इन तीनों कषायों का क्षपकश्रेणी में जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक एक वर्ष पाया जाता है। मोहनीयसत्कर्मवाले अकषायी और यथाख्यातसंयत उपशम श्रेणी में 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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