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गा० २२]
मूलपयडिविहत्तीए कालाणुगमो
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६६०. अवगद विहशि० जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमु० । अविहत्ति० सव्वद्धा । एवमकसाय०-जहाक्खाद० वत्तव्वं । आभिणि-सुद०-ओहि०-मणपज्जव०-चक्खु०अचक्खु०-ओहिदसण-सणि विहत्ति० सव्वद्धा । अविहत्ति० जहण्णुक्क० अंतोमु० । उवसम-सम्मामि० वेउब्वियमिस्सभंगो । सासण. विहत्ति० जह० एगसमओ फिर भी मनोयोग और वचनयोगकी अपेक्षा अपने अवान्तर भेदोंमें परावर्तन होनेमें कोई बाधा नहीं है। इसका यह तात्पर्य है कि मनोयोगसे वचनयोग या काययोग नहीं होता। इसी प्रकार अन्य योगोंकी अपेक्षा भी जान लेना चाहिये । पर मनोयोग या वचनयोगका एक अवान्तर भेद होकर उसके स्थानमें दूसरा अवान्तर भेद आ सकता है। नाना जीवोंकी अपेक्षा औदारिकमिश्र काययोग और कार्मणकाययोग सर्वदा पाये जाते हैं तथा इनमें मोह नीय विभक्तिवाले जीव भी सर्वदा पाये जाते हैं, इसलिये इनकी अपेक्षा मोहनीय विभक्ति वाले जीवोंका काल सर्वदा कहा है। पर मोहनीय अविभक्तिवाले जीवोंके औदारिकमिश्र काययोग और कार्मणकाययोग सर्वदा नहीं होते । जब केवली केवलिसमुद्घात करते हैं तब उनके कपाट समुद्घातके समय औदारिकमिश्रकाययोग और लोकपूरणसमुद्घातके समय कार्मणकाययोग होता है। अब यदि नाना जीव एक साथ केवलिसमुद्घात करते हैं तो इन दोनों योगोंकी अपेक्षा मोहनीय अविभक्तिवाले जीवोंका जघन्यकाल क्रमसे एक समय और तीन समय पाया जाता है और यदि लगातार नाना जीव केवलिसमुद्घात करते हैं तो इन दोनों योगोंकी अपेक्षा मोहनीय अविभक्तिवाले जीवोंका उत्कृष्टकाल संख्यात समय पाया जाता है, क्योंकि अधिकसे अधिक संख्यात समय तक ही नाना जीव लगातार केवलिसमुद्घात करते हैं। वैक्रियिक मिश्रकाययोगी आदिका काल भी इसी प्रकार समझ लेना चाहिये।
१०. अपगतवेदियोंमें मोहनीय विभक्तिवाले जीवोंका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है । तथा मोहनीय अविभक्तिवाले अपगतवेदी जीव सर्वदा होते हैं। इसी प्रकार अकषायी और यथाख्यातसंयत जीवोंके कहना चाहिये ।
विशेषार्थ-उपशमश्रेणिकी अपेक्षा अपगतवेदियोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है। तथा बारहवें गुणस्थानसे लेकर आगेके सभी मोहनीय अविभक्तिवाले जीव अपगतवेदी होते हैं, इस अपेक्षासे इनका सर्वकाल कहा है।
मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपर्ययज्ञानी, चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी और संज्ञी जीवोंमें मोहनीय विभक्तिवाले जीव सर्वदा होते हैं। तथा उक्त मार्गणा
ओंमें मोहनीय अविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है। उपशमसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि मोहनीय विभक्तिवालोंका काल वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंके समान है । सासादनसम्यग्दृष्टि मोहनीय विभक्तिवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय और
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