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गा० २२ ] मूलपयडिविहत्तीए सादिअादिअणुगमो णासणमत्तिसंभवादो । असंभवे च ण ते भव्वा; अभव्वसमाणत्तादो। मदिअण्णाणिसुदअण्णाणि-असंजद-मिच्छादिट्टी० मोहविहत्ती किं सादिया किमणादिया किं धुवा किमद्धवा ? सादि-अणादि-धुव-अद्धवा। अभव्व०मोहविहत्ती किं सादिया किमणादिया किं धुवा किमडुवा ? अणादिया, धुवा च। अपगतवेद० मोहविहत्ती किं सादिया किमणादिया किं धुवा किम वा ? सादिया अद्भुवा च । मोहअविहत्ती सादिया धुवा च । एवमकसाय-सम्माइटि-खइय०-अणाहारएत्ति वत्तव्वं । णवरि, अणाहा० अद्धवपदं पि अस्थि। सेमसव्वमग्गणाणं मोहविहत्ती जहासंभवं अविहत्ती च सादि-अदुवा ।
मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत और मिथ्यादृष्टि जीवोंके मोहनीयविभक्ति क्या सादि है, क्या अनादि है, क्या ध्रुव है, क्या अध्रुव है ? उक्त मार्गणाओंमें मोहविभक्ति सादि, अनादि, ध्रुव और अध्रुव चारों रूप है । अभव्य जीवोंके मोहविभक्ति क्या सादि है, क्या अनादि है, क्या ध्रुव है, क्या अध्रुव है ? अभव्य जीवोंके मोहविभक्ति अनादि और ध्रुव है।
अपगतवेदी जीवोंके मोहविभक्ति क्या सादि है, क्या अनादि है, क्या ध्रुव है, क्या अध्रुव है ? अपगतवेदी जीवोंके मोइविभक्ति सादि और अध्रुव है। तथा अपगतवेदी जीवोंके मोह-अविभक्ति अर्थात् मोहनीय का अभाव सादि और ध्रुव है। इसी प्रकार अकषायी, सम्यग्दृष्टि, क्षायिक सम्यग्दृष्टि और अनाहारक जीवोंके कहना चाहिये । इतनी विशेषता है कि अनाहारक जीवोंके मोहनीय अविभक्तिका अध्रुव पद भी है। शेष सभी मार्गणाओंमें मोहविभक्ति तथा यथासंभव मोह-अविभक्ति सादि और अध्रुव हैं। . विशेषार्थ-गोमट्टसार कर्मकाण्डमें जो 'सादी अबंधबंधे' इत्यादि गाथा आई है उसमें बन्धकी अपेक्षा सादित्व आदिका विचार किया है, सत्त्वकी अपेक्षा नहीं। फिर भी वहां सादि आदिके विषयमें बन्धकी अपेक्षा जो व्यवस्था दी है वह यहां सत्त्वकी अपेक्षासे जानना । इनमेंसे सामान्यकी अपेक्षा मोहनीय कर्ममें अनादि, ध्रुव और अध्रुव ये तीन पद ही घटित होते हैं सादिपद नहीं। यही व्यवस्था अचक्षुदर्शनी जीवोंके जानना चाहिये। भव्योंके ध्रुव पदको छोड़कर मोहनीय कर्म के दो पद ही पाये जाते हैं। ये दोनों मार्गणाएं मोहनीयकी सत्त्वव्युच्छित्ति तक निरन्तर रहती हैं इसलिये इनमें सादिपद संभव नहीं। भव्योंके ध्रुवपद नहीं होने का कारण स्पष्ट है । मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत और मिथ्यादृष्टि ये चार मार्गणाएं अनादि और सादि दोनों प्रकारकी हैं। जिन जीवोंने कभी भी मिथ्यात्व गुणस्थानको नहीं छोड़ा है और न छोड़नेकी संभावना है उनकी अपेक्षा अनादि हैं और शेष जीवोंकी अपेक्षा सादि हैं। तथा इन मार्गणाओंमें भव्य और अभव्य दोनों प्रकारके जीव पाये जाते है, अतः इनमें मोहनीयके सादि आदि चारों पद संभव हैं। अभव्य
(१) मोहविहत्ती-अ०।
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