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जयवलासहिदे कसायपाहुडे
[ पयडिविहत्ती २
खेत्तभंगो । विदियादि जाव सत्तमि ति भुज० खेत्तभंगो । अप्पदर ० अहि के० खेत्तं फोसिदं ? लोग० असंखे० भागो । एक्क-वे-तिष्णि चत्तारि पंच-छ-चोदसभागा वा देखणा ।
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४५६. तिरिक्खेसु भुज० अवहिदाणं खेत्तभंगो । अप्पद० के० खेत्तं फोसिदं ? लोग असंखे ० भागो, सव्वलोगो वा । एवमोरालि० णवुंस० - तिण्णिले० वत्तव्वें । पंचिदियतिरिक्ख-पांच ० तिरि० पज० पंचिं० तिरि० जोणिणीसु भुजगार० खत्तेभंगो । अप्पद० अवद्वि० के० खेत्तं फोसिद : लोग० असंखे०भागो, सव्वलोगो वा । एवं मणुसतियस्स वत्तव्वं । पंचि तिरि० अपज० अप्पद० अवद्विदवि० के० खे० फोसिदं ? लोग० असंखे० भागो, सव्वलोगो वा । एवं मणुसअपज ० सव्वविगलिंदिय-पंचिंदिय
अपज० ।
स्पर्श उनके क्षेत्र के समान है। दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके भुजगार विभतिस्थानवाले जीवोंका स्पर्श उनके क्षेत्रके समान है । दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक अल्पतर और अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और त्रसनालीके चौदह भागों में से दूसरी पृथिवीकी अपेक्षा कुछ कम एक राजु, तीसरी पृथिवीकी अपेक्षा कुछ कम दो राजु, चौथी पृथिवीकी अपेक्षा कुछ कम तीन राजु, पांचवीं पृथिवीं की अपेक्षा कुछ कम चार राजु, छठी पृथिवीकी अपेक्षा कुछ कम पांच राजु और सातवीं पृथिवीकी अपेक्षा कुछ कम छह राजु प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है ।
४५६. तिर्यचोंमें भुजगार और अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीवोंका स्पर्श क्षेत्र के समान है । तिर्यचोंमें अल्पतर विभक्तिस्थानवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और सर्वलोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । इसी प्रकार औदारिककाययोगी, नपुंसकवेदी और कृष्ण आदि तीन लेश्यावाले जीवोंके कहना चाहिये | पंचेन्द्रियतिर्यंच, पंचेन्द्रियतिर्यंच पर्याप्त और पंचेन्द्रियतिर्यंच योनिमती जीवों में भुजगार विभक्तिस्थानवाले जीवोंका स्पर्श क्षेत्रके समान है । तथा इन्हीं तीन प्रकारके तिर्यचोंमें अल्पतर और अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । इसी प्रकार सामान्य, पर्याप्त और स्त्रीवेदी मनुष्योंके स्पर्शका कथन करना चाहिये ।
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पंचेन्द्रिय तिर्यच लब्ध्यपर्याप्तकों में अल्पतर और अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और सर्वलोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। इसीप्रकार मनुष्य लब्ध्यपर्याप्तक, सभी विकलेन्द्रिय, और पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्यातक जीवोंमें अल्पतर और अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीवोंका स्पर्श कहना चाहिये ।
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