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________________ गा० २२ ] भुजगारविहत्तीए फोसणाशुगमो ४०६ च वत्तव्यं । वरि पदविसेसो जाणियव्वो । वादरवाउ०पज्ज० अवद्वि० के० ? लोगस्स संखे० भागे । अप्प असंखे भागे । सेससंखेज्जा संखेज्ज सव्वरासीओ केवडि० खेते ? लोगस्स असंखेज्जदिभागे । ० एवं खेत्ताणुगमो समत्तो । ६४५४. फोसणाणुगमेण दुत्रिहो णिद्देसो ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण भुजगारविहतिएहि केवडियं खेतं फोसिदं ? लोगस्स असंखे० भागो, अट्ठ-चोदसभागा वा देखणा । अप्पदर विहत्तिए केवडियं खेतं फोसिदं ? लोग० असंखे० भागो, अट्ठ- चोहसभागा देसूणा, सव्वलोगो वा । अवट्टि • सव्वलोगो । एवं कायजोगिचारि कसाय असंजद ० - अचक्खु ० भवसिद्धि० आहारि ति वत्तव्वं । १४५५. आदेसेण रइसु भुज० खेतभंगो। अप्पदर० अवद्विदविहत्तिएहि केव० फोसिदं ? लोगस्स असंखे० भागो, छ चोइस भागा वा देखणा । पढमपुढवि० विशेषता है जहां जितने अवस्थित आदि पद हों उन्हें जानकर ही तदनुसार क्षेत्र कहना चाहिये | बादर वायुकायिक पर्याप्त जीवोंमें अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? लोकके संख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रमें रहते हैं । तथा ये ही बादरवायुकायिक अल्पतर विभक्तिस्थानवाले पर्याप्त जीव लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रमें रहते हैं । शेष संख्यात और असंख्यात संख्यावाली सर्व जीव राशियां कितने क्षेत्रमें रहती हैं ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रमें रहती हैं । इसप्रकार क्षेत्रानुगम समाप्त हुआ । $ ४५४. - स्पर्शनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है ? ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । उनमें से ओघनिर्देशकी अपेक्षा भुजगार विभक्तिस्थानवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और त्रस नालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । अल्पतर विभक्तिस्थानवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है? लोकके असंख्यातवें भाग, त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछकम आठ भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? सर्वलोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। इसीप्रकार काययोगी, क्रोधादि चारों कषायवाले, असंयत, अचक्षुदर्शनी, भव्य और आहारक जीवोंमें भुजगार आदि विभक्तिस्थानवाले जीवोंका स्पर्शन कहना चाहिये । ४५५. आदेश की अपेक्षा नारकियों में भुजगारविभक्तिस्थानवाले जीवों का स्पर्श क्षेत्र के समान है । नारकियों में अल्पतर और अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। पहली पृथिवीमें भुजगार आदि विभक्तिस्थानवाले जीवोंका ५२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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