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________________ अयधवलासहिदे कसापाहुडे [पयडिविहत्ती २ अव४ि० जह० एगसमओ, उक० तेत्तीसं सागरोवमाणि | षढमादि जाव सत्तमित्ति मुज० अप्प० जहण्णुक० एगसमओ, अवष्टिद. जह. एगसमओ, उक्क० अप्पप्पणो उकस्सहिदी। एवं तिरिक्ख-पंचिंदियतिरिक्ख-पंचिं० तिरि० पज०-पंचिं० तिरि. जोणिणीसु । णवरि अवहिद० उक्क० अप्पप्पणो उक्कस्सहिदी । एवं मणुस-मणुसपअत्तएसु। णवरि अप्प० जह० एगस० उक्क० बे समया। मणुसणीणमेवं चेव, णव.र अप्प० जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ। पंचिं० तिरि० अपज अप्पदर० केव० ? जहण्णुक्क० एगसमओ। अवहिद० के० ? जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमुहुत्तं । एवं मणुस अपज वत्तव्वं । ६ ४३१. देव० भुज० अप्पदर० केव०१ जहण्णुक्क एगसमओ । अवविद० के० ? जह० एगसमओ, उक्क० तेत्तीसं सागरोवमाणि । भवणादि जाव उवरिमगेवजे त्ति भुज. अप्पदर० जहण्णुक्क० एगसमओ। अवष्टिद० के० १ जह० एगसमओ, उक्क. सगजघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अवस्थितका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्ट काल तेतीस सागर है। पहली पृथ्वीसे लेकर सातवीं पृथ्वी तक प्रत्येक नरकमें मुजगार और अल्पतरका जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय तथा अवस्थितका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है । इसीप्रकार सामान्य तियंच, पंचेन्द्रिय तियंच, पंचेन्द्रिय तिर्यच पर्याप्त और पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती जीवोंमें भुजगार आदि तीनोंके जघन्य और उत्कृष्ट कालका कथन करना चाहिये। यहां इतनी विशेषता है कि इन सामान्य तिर्यंच आदिकमें अवस्थितका उत्कृष्टकाल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थिति प्रमाण कहना चाहिये। इसीप्रकार सामान्य मनुष्य और मनुष्य पर्याप्त जीवोंमें कथन करना चाहिये। इसनी विशेषता है कि इनके अल्पतरका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल दो समय कहना चाहिये । स्त्रीवेदी मनुष्योंमें भी इसीप्रकार कथन करना चाहिये। इतनी विशेषता है कि इनके अल्पतरका जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय होता है। __पंचेन्द्रिय तियंच लब्ध्यपर्याप्तकोंमें अल्पतरका काल कितना है ? जघन्य और संस्कृष्ट काल एक समय है। अवस्थितका काल कितना है ? जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । इसीप्रकार लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्योंके अल्पतर और अवस्थितके जघन्य और उत्कृष्टकालका कथन करना चाहिये । ६ ४३१. देवोंमें भुजगार और अल्पतरका काल कितना है ? इन दोंनोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अवस्थितका काल कितना है ? जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्ट काल तेतीस सागर है। भवनवासियोंसे लेकर उपरिमप्रैवेयक तक प्रत्येक चातिके देवों में भुजगार और अल्पतरका जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय है। अबस्थितका काल कितना है ? जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थिति प्रमाण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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