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________________ गा० २२] असंखे ० गुणा । S ४१६. किण्ह० - पील० सव्वत्थोवा एक्कवीसविह०, सत्तावीसविह० असंखे० गुणा, चवीस असंखे० गुणा, अट्ठावीस ० असंखे० गुणा, छव्वीस ० अनंतगुणा । काउ सव्वत्थोवा बावीस विह०, सत्तावीस ० असंखे० गुणा । सेसं ओघभंगो । सुक्कलेस्सि० ० जाव तेवीसविहत्तिया त्ति ओघभंगो । तदो सत्तावीस असंखे० गुणा । उवरि आणदभंगो | अभवसिद्धि० सासण० णत्थि अप्पा बहुगं । खइयसम्माइट्ठीसु जाव तेरस विहत्तिओ त्ति ओघभंगो । तदो एकवीस असंखेजगुणा । वेदय० सव्वत्थोवा वावीसविह०, तेवीसविह० विसेसा०, चउवीस० असंखे० गुणा, अहावीस ० असंखे ० गुणा । उवसम० सव्वत्थोवा चउवीसविह०, अट्ठावीस ० असंखे० गुणा । एवं सम्मामिच्छवि । पावहती अप्पा बहुश्राणुगमो 0 Jain Education International एवमप्पा बहुगं समत्तं । इनमें अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाले जीवोंसे छब्बीस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे होते हैं। . ३८३ १४१६. कृष्ण और नील लेश्यामें इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीव सबसे थोड़े है । इनसे सत्ताईस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे चौबीस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे छब्बीस विभक्तिस्थानवाले जीव अनन्तगुणे हैं । कपोतलेश्या में बाईस विभक्तिस्थानवाले जीव सबसे थोड़े हैं । इनसे सत्ताईस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । शेष कथन ओघके समान है । शुक्ललेश्यावाले जीवोंमें तेईस विभक्तिस्थान तक अल्पबहुत्व ओघ के समान है । तदनन्तर तेईस विभक्तिस्थानवाले जीवोंसे सत्ताईस विभक्तिस्थानवाले असंख्यातगुणे हैं । इनके ऊपर आनतके समान जानना चाहिये । अभव्य और सासादन सम्यग्दृष्टि जीवोंमें अल्पबहुत्व नहीं है । क्षायिकसम्यग्दृष्टियों में तेरह विभक्तिस्थान तक अल्पबहुत्व ओघके समान है । तेरह विभक्तिस्थानवाले जीवोंसे इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । वेदकसम्यग्दृष्टियों में बाईस विभक्तिस्थानवाले जीव सबसे थोड़े हैं । इनसे तेईस विभक्तिस्थानवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे चौबीस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । उपशमसम्यग्दृष्टियोंमें चौबीस विभक्तिस्थानवाले जीव सबसे थोड़े हैं । इनसे अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इसीप्रकार सम्य मिध्यात्व में भी कथन करना चाहिये । इसप्रकार अल्पबहुत्वानुयोगद्वार समाप्त हुआ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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