SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 407
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३८२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पयडिविहत्ती २ गुणा । एवं जाव तेवीसविहत्तिओ त्ति ओघभंगो। तदो एकवीस० असंखे० गुणा, चउबीस० असंखे० गुणा, अट्ठावीस० असंखे० गुणा । एवमोहिदंसण० सम्मादिहि त्ति वत्तव्वं । मणपज्ज० एवं चेव, णवरि संखेज्जगुणं कायव्वं । एवं संजद० सामाइयच्छेदो० वत्तव्वं । परिहार० सव्वत्थोवा वावीसविहत्तिया, तेवीसविह. विसे०, एकवीसवि० संखे. गुणा, चउवीसवि० संखे. गुणा, अट्ठावीसवि० संखे० गुणा । एवं संजदासजदाणं । णवरि चउवीसवि० असंखे० गुणा, अहावीसवि० असंखे० गुणा । सुहुमसांपरा० सव्वत्थोवा एक्कवि०, चउवीसवि० संखे० गुणा, एकवीस० संखे० गुणा। असंजद० सव्वत्थोवा वावीसविह०, तेवीसविह० विसे०, सत्तावीस० असंखे गुणा, एकवीसवि० असंखे० गुणा, चउवीस० असंखे० गुणा, अठावीसवि० असंखे० गुणा, छव्वीसवि. अणंतगुणा । एवं तेउ०-पम्म०। णवरि छव्वीस० स्थान तक ओघके समान कथन करना चाहिये । तदनन्तर तेईस विभक्तिस्थानवाले जीवोंसे इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे चौबीस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इसीप्रकार अवधिदर्शनी और सम्यग्दृष्टि जीवोंके भी कथन करना चाहिये । मनःपर्ययज्ञानी जीवोंके भी इसीप्रकार कथन करना चाहिये। इतनी विशेषता है कि मतिज्ञानी आदि जीवोंमें जिन स्थानवाले जीवोंको असंख्यातगुणा कहा है उन्हें यहां संख्यातगुणा कर लेना चाहिये। मनःपर्ययज्ञानी जीवोंके अल्पबहुत्वके समान संयत, सामायिकसंयत और छेदोपस्थापनासंयत जीवोंके अल्पबहुत्वका कथन करना चाहिये । परिहारविशुद्धिसंयतोंमें बाईस विभक्तिस्थानवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे तेईस विभक्तिस्थानवाले जीव विशेष अधिक है। इनसे इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे चौबीस विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इसीप्रकार संयतासंयतोंके कथन करना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इनमें इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीवोंसे चौबीस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। सूक्ष्मसांपरायिकसंयतोंमें एक विभक्तिस्थानवाले जीवसबसे थोड़े हैं। इनसे चौबीस विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातगुणे हैं। असंयतोंमें बाईस विभक्तिस्थानवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे तेईस विभक्तिस्थानवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे सत्ताईस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इससे चौबीस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इससे छब्बीस विभक्तिस्थानवाले जीव अनन्तगुणे हैं। इसीप्रकार तेजोलेश्या और पद्मलेश्यामें कथन करना चाहिये। इतनी विशेषता है कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy