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________________ गा० २२ पयडिट्ठाणविहत्तीए अप्पाबहुआणुगमो ३७६ गुणा, छव्वीसवि० अणंतगुणा । वेउन्चिय० सव्वत्थोवा सत्तावीसवि० एकवीसवि० असंखे० गुणा, चउवीसवि० असंखे० गुणा, अहावीसवि० असंखे० गुणा, छवीसवि० संखे० गुणा । वेउव्वियमिस्स० सव्वत्थोवा वावीसविहत्तिया, एकवीसवि० संखे० गुणा, सत्तावीसवि० असंखे० गुणा, चउवीसवि० असंखे० गुणा, अहावीसवि० असंखे० गुणा, छब्बीसवि० असंखे० गुणा । कम्मइय० एवं चेव । णवरि छन्वीसवि० अणंतगुणा । एवमणाहार० वत्तव्वं । आहार-आहारमिस्स० सव्वट्ठभंगो, णवरि वावीसं णत्थि। ६४१३. वेदाणुवादेण इत्थि० सव्वत्थोवा बारसविहत्तिया, तेरसवि० संखे० गुणा, बावीसवि० संखे० गुणा, तेवीसवि. विसे०, एकवीसवि० संखे० गुणा, सत्तावीसवि० असंखे० गुणा, चउवीसवि० असंखे० गुणा, अहावीसवि० असंखे० गुणा, छव्वीसवि. अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे छब्बीस विभक्तिस्थानवाले जीब अनन्तगुणे हैं। वैक्रियिक काययोगी जीवोंमें सत्ताईस विभक्तिस्थानवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे चौबीस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यागुणे हैं। इनसे छब्बोस विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातगुणे हैं। वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें बाईस विभक्तिस्थानवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे सत्ताईस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे चौबीस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे छब्बीस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इसीप्रकार कार्मणकाययोगी जीवोंमें भी अल्पबहुत्वका कथन करना चाहिये। इतनी विशेषता है कि कार्मणकाययोगियों में अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाले जीवोंसे छब्बीस विभक्तिस्थानवाले जीव अनन्तगुणे होते हैं। कार्मणकाययोगियोंके समान अनाहारक जीवोंमें अल्पबहुत्वका कथन करना चाहिये । आहारक और आहारकभित्रकाययोगी जीवोंमें सर्वार्थसिद्धिके देवोंके समान अल्पबहुत्वका कथन करना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इन दो योगवाले जीवोंके बाईस विभक्तिस्थान नहीं पाया जाता है। ४१३.वेद मार्गणाके अनुवादसे स्त्रीवेदमें बारह विभक्तिस्थानवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे तेरह विभक्तिस्थानत्राले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे बाईस विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे तेईस विभक्तिस्थानवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे सत्ताईस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे चौबीस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे छब्बीस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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