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________________ ३७८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पयडिविहत्ती २ अहावीसवि० संखे० गुणा । एवं सबढे, णवरि संखेजगुणं कायव्वं । - $ १११. इंदिशाणुवादेण एइंदिय-बादर० पज० अपज-सुहुमेइंदिय-सुहुमेइंदियपन्ज-सुहुमेइंदिय अपजत्तएसु सव्वत्थोवा सत्तावीसविहत्तिया। अहावीसवि० असंखेजगुणा, छन्चीसवि० अणंतगुणा । एवं सबवणफदि-सव्वणिगोद-मदि-सुद-अण्णाणमिच्छादिष्टि असण्णि त्ति वत्तव्यं । णवरि बादरवणप्फदिकाइय-पत्तेयसरीरपज. अपज०-बादरणिगोदपदिहिदपजत्तअपजत्ताणं पुढविकाइयभंगो । पंचिंदिय-पंचिंदियपज०-तस-तसपज्ज० ओघमंगो। णवरि छव्वीसवि० असंखे० गुणा । एवं पंचमणपंचवचि०-सण्णि-चक्खु ति क्त्तव्वं । ६४१२. ओरालियमिस्स० सव्वत्थोवा वावीसविहत्तिया, एकवीसवि० संखे० गुणा, चउवीसवि० संखे० गुणा, सत्तावीसवि० असंखे० गुणा, अट्ठावीसवि० असंखे० असंख्यातगुणे हैं । इनसे चौबीस विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इसीप्रकार सर्वार्थसिद्धिके देवोंमें भी कथन करना चाहिये। इतनी विशेषता है कि अनुदिशादिकमें बाईस विभक्तिस्थानवाले जीवोंसे इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे कह आये हैं, पर यहां बाईस विभक्तिस्थानवालोंसे इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातगुणे होते हैं। ६४११. इन्द्रियमार्गणाके अनुवादसे एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त, बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त, सूक्ष्म एकेन्द्रिय, सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त और सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवों में सत्ताईस विभक्तिस्थानवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे छब्बीस विभक्तिस्थानवाले जीव अनन्तगुणे हैं। इसीप्रकार सभी वनस्पतिकायिक, सभी निगोद, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, मिथ्यादृष्टि और असंझी जीवोंमें कथन करना चाहिये। इतनी विशेषता है कि बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त, बादरवनस्पति प्रत्येक शरीर अपर्याप्त, बादर निगोद प्रतिष्ठित प्रत्येकशरीर पर्याप्त और बादर निगोद प्रतिष्ठित प्रत्येकशरीर अपर्याप्त जीवोंमें पृथिवी कायिक जीवोंके अल्पबहुत्वके समान अल्पबहुत्व कहना चाहिये । पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय पर्याप्त, त्रस और त्रसपर्याप्त जीवोंमें ओषके समान अल्पबहुत्व कहना चाहिये। इतनी विशेषता है कि इनमें छब्बीस विभक्तिस्थानवाले जीव अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाले जीवोंसे अनन्तगुणे न होकर असंख्यातगुणे होते हैं । इसीप्रकार पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, संज्ञी और चक्षुदर्शनी जीवोंमें अल्पबहुत्वका कथन करना चाहिये। ६४१२. औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें बाईस विभक्तिस्थानवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे चौबीस विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे सत्ताईस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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