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________________ ३८० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पयडिविहत्ती २ असंखे० गुणा । पुरिसवेदे सव्वत्थोवा पंचविहत्तिया, एक्कारसवि० संखे० गुणा, बारसवि० विसेसा०, तेरसवि० संखे० गुणा, बावीसवि० संखे० गुणा, तेवीसवि० विसे०, सत्तावीसवि० असंखे० गुणा, एकवीसवि० असंखे० गुणा, चउवीसवि० असंखे० गुणा, अट्ठावीसवि० असंखे० गुणा, छव्वीसवि० असंखे० गुणा । णqसए सम्बत्थोवा बारसविहतिया, तेरसवि० संखे० गुणा, वावीसवि० संखे० गुणा, तेवीसवि० विसे०, सत्तावीसवि० असंखे० गुणा, एकवीसवि० असंखे० गुणा, चउवीसवि० असंखे० गुणा, अहावीसवि० असंखे० गुणा, छव्वीसवि० अणंतगुणा । अवगद० सव्वत्थोवा एकारसवि०, एक्कवीसवि० संखे० गुणा, चउवीसवि० संखे० गुणा, पंचवि० संखे० गुणा, एगवि० संखे० गुणा, दुवि० विसेसा०, तिवि० विसेसा०, चदुवि० संखेजगुणा। ४१४. कसायाणुवादेण कोधक० सव्वत्थोवा पंचविहत्तिया, एक्कारसवि० संखे० तगुणे हैं। पुरुषवेदमें पांच विभक्तिस्थानवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे ग्यारह विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे बारह विभक्तिस्थानवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे तेरह विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे बाईस विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे तेईस विभक्तिस्थानवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे सत्ताईस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे चौबीस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे छब्बीस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। नपुंसकवेदमें बारह विभक्तिस्थानवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे तेरह विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे बाईस विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे तेईस विभक्तिस्थानवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे सत्ताईस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातंगुणे हैं । इनसे इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे चौबीस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे छब्बीस विभक्तिस्थानवाले जीव अनन्तगुणे हैं। अपगतवेदमें ग्यारह विभक्तिस्थानवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे चौबीस विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे पांच विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे एक विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे दो विभक्तिस्थानवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे तीन विभक्तिस्थानवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे चार विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातगुणे हैं। ११४. कषाय मार्गणाके अनुवादसे क्रोधकषायमें पांच विभक्तिस्थानवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे ग्यारह विभकिस्थानवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे बारह विभक्ति. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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