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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पयडिविहत्ती २ अकपंती वावीसविहत्तियस्स । सव्वहेडिमअंकपंती तेरसविहत्तियस्स । संपहि एदस्सालावो वुच्चदे । सिया एदे च तेवीसविहात्तिओ च वावीसविहत्तिओ च तेरसविहात्तओ च । एवं सेसालावा जाणिदण वत्तव्वा । एत्थ एगा पत्थारसलागा लब्भदि १ । उच्चारणाओ पुण अह होति ८ । ताओ पुण ताव हवणिजाओ। संपहि तेवीसवावीसहिदअक्खे धुवे काऊण बारसविहत्तिएण सह तिसंजोगपत्थारो होदि ति विदियपत्थारसलागा २ । एवमेक्कारसविहत्तियप्पहुडि जाणिदूण णेदव्वं जाव एगविहत्तिओ ति । एवं णीदे अतिसंजोगपत्थारसलागाओ उप्पजंति ८ । संपहि तेवीसविहत्तियक्खं धुवं कादण तेरस-बारसविहत्तिएहि सह विदिओ तिसंजोगपत्थारो २ । पुणो तेवीसतेरसक्खे धुवे कादूण एक्कारसादीसु णेदव्वं जाव एगविहत्तिओ ति । एवं णीदे सत्तपत्थारसलागाओ उपजंति ७। एवं तिसंजोगसेसपत्थारावही जाणिदण णेदव्वो। एवं णीदे अहण्हं संकलणासंकलणमेत्तपत्थारसलागाओ वीसुत्तरसयमेत्तीओ उपजंति १२० । अंक बाईस विभक्तिस्थानके सूचक हैं। तदनन्तर सबसे नीचेकी पंक्तिमें स्थित अंक तेरहविभक्तिस्थानके सूचक हैं। अब इसका आलाप कहते हैं- कदाचित् ये अट्ठाईस आदि ध्रुवस्थानवाले अनेक जीव तेईसविभक्तिस्थानवाला एक जीव, बाईस विभक्तिस्थानवाला एक जीव और तेरह विभक्तिस्थानवाला एक जीव होता है । इसीप्रकार शेष सात आलाप भी जानकर कहना चाहिये । इन सभी आलापोंकी एक प्रस्तारशलाका प्राप्त होती है। परन्तु आलाप आठ होते हैं अभी उन आठों आलापोंको स्थापित कर देना चाहिये । इसीप्रकार तेईस और बाईस विभक्तिस्थानोंके अक्षोंको ध्रव करके बारह विभक्तिस्थानके साथ त्रिसंयोगी एक प्रस्तार होता है। इसप्रकार यह दूसरी प्रस्तारशलाका हुई। इसीप्रकार तेईस और बाईस विभक्तिस्थानोंको ध्रुवकरके ग्यारह विभक्तिस्थानसे लेकर एक विभक्तिस्थान तक जान कर प्रस्तारशलाकाएँ उत्पन्न कर लेना चाहिये । इसप्रकार प्रस्तारशलाकाओंके लानेपर त्रिसंयोगी आठ प्रस्तारशलाकाएँ उत्पन्न होती हैं। इसीप्रकार तेईस विभक्तिस्थानसंबन्धी अक्षको ध्रुव करके तेरह और बारह विभक्तिस्थानोंके साथ अन्य त्रिसंयोगी प्रस्तार ले आना चाहिये । अनन्तर तेईस और तेरह विभक्तिस्थानसंबन्धी अक्षोंको ध्रव करके एक विभक्तिस्थानतक ग्यारह आदि विभक्तिस्थानोंमें इसीप्रकार ले जाना चाहिये । इसप्रकार प्रस्तारोंके उत्पन्न करनेपर त्रिसंयोगी सात प्रस्तारशलाकाएँ उत्पन्न होती हैं। इसीप्रकार त्रिसंयोगी शेष प्रस्तारविधिको जानकर शेष प्रस्तारशलाकाएँ उत्पन्न कर लेना चाहिये । इसप्रकार त्रिसंयोगी प्रस्तारशलाकाएँ उत्पन्न करनेपर आठ गच्छके संकलनाके जोड़प्रमाण कुल एकसौ बीस प्रस्तारशलाकाएँ उत्पन्न होती । अथवा, 'एकोत्तरपदवृद्धो' इत्यादि आर्याकी (१) 'गच्छकदी मूलजुदा उत्तरगच्छादिएहि संगुणिदा। छहि भजिदे जं लद्धं संकलणाए हवे कलणा-अव०प०अ०५०८४७। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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