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________________ गा० २२] पयडिट्ठाणविहत्तीए भंगविचओ विहत्तियस्स उवरिमेहि सह दुसंजोगे भण्णमाणे चत्तारि पत्थारसलागाओ लब्भंति ४ । चत्तारिविहत्तियस्स उवरिमेहि सह दुसंजोगे कीरमाणे तिण्णि पत्थारसलागाओ ३ । तिण्णिविहत्तियस्स उवरिमेहि सह दुसंजोगे कीरमाणे दोण्णि पत्थारसलागाओ २। दोण्हं विहत्तियस्स एक्किस्सेहि विहत्तीए सह दुसंजोगे कीरमाणे एक्का पत्थारसलागा १। एवं दुसंजोगसव्वपत्थारसलागाओ एक्कदो मेलिदे पंचेतालीस ४५ होति । अहवा पुव्वहविदसंदिहिम्हि उवरिमदस-णवण्हं अण्णोण्णगुणदाणं हेछिमअण्णोण्णगुणिदएक-वै-अंकेहि ओवट्टणम्मि कदे पुव्वुत्तपत्थारसलागा आगच्छति । एवं दुसंजोगपरूवणा गदा । ० ० ० ० ० ० ० ० ३४१. तिसंजोगपत्थारो : ११ १ १ १ १ २ २ २ २ २ एसो। एत्थ उवरिम'१ १ २ २ १ १ २ २५ १ २ १ २ १ २ १ २ असुण्णाओ धुवस्स । ततो अणंतरहेष्टिमअंकपंती तेवीसविहत्तियस्स । उवरीदो तदियस्थानोंके साथ द्विसंयोगी प्रस्तारोंका विचार करनेपर चार प्रस्तारशलाकाएं उत्पन्न होती हैं। चार विभक्तिस्थानके ऊपरके तीन आदि विभक्तिस्थानोंके साथ द्विसंयोगी प्रस्तारोंका विचार करनेपर तीन प्रस्तारशलाकाएं उत्पन्न होती हैं। तीन विभक्तिस्थानके ऊपरके दो आदि विभक्तिस्थानोंके साथ द्विसंयोगी प्रस्तारोंका विचार करनेपर दो प्रस्तारशलाकाएं उत्पन्न होती हैं। दो विभक्तिस्थानके एक विभक्तिस्थानके साथ द्विसंयोगी प्रस्तारके लाने पर एक प्रस्तारशलाका उत्पन्न होती है। इसप्रकार द्विसंयोगी सभी प्रस्तारशलाकाओंको एकत्रित करनेपर कुल जोड़ पैंतालीस होता है । अथवा, 'एकोत्तरपदवृद्धो' इत्यादि आर्याकी जो ऊपर संदृष्टि स्थापित कर आये हैं उसमें ऊपरकी पंक्तिमें स्थित १० और ६ का अलग गुणा करे । तथा नीचेकी पंक्तिमें स्थित १ और २ का अलग गुणा करे । अनन्तर १० और के गुणनफलको १ और २ के गुणनफलसे भाजित कर दे। इस प्रकारकी विधि करनेपर भी पूर्वोक्त पैंतालीस प्रस्तारशलाकाएं आ जाती हैं । इसप्रकार द्विसंयोगी प्ररूपणा समाप्त हुई। ३४१.त्रिसयोगी प्रस्तार यह है- ० ० ० ० ० ० ० ० १ १ १ १ २ २ २ २ १ २ १ २ १ २ १ २ इस प्रस्तारमें ऊपरके आठ शून्य ध्रुवस्थानके सूचक हैं । उसके अनन्तर नीचेकी पंक्तिमें स्थित अंक तेईस विभक्तिस्थानके सूचक हैं। इसके अनन्तर ऊपरसे तीसरी पंक्ति में स्थित (१) -स्से वि०स० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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