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________________ २६० जयधवलासहिदे कसायपाहुई . [पडिविहत्ती २ ६३२१. मणुस्स-मणुस्सपजत्त-मणुसिणीसु अट्ठावीस-सत्तावीस-छव्वीस-चउवीसविह० जह० एगसमओ, पालदोवमस्स असंखेजदिभागो, अंतोमु० । उक्क० तिण्णि पलिदोवमाणि पुवकोडिपुत्तेणब्भहियाणि । तेवीस-बावीसादि उवरि० णत्थि अंतरं । ६३२२. देवेसु अट्ठावीस-सत्तावीस-छव्वीस-चदुवीस जह० एयसमओ, पलिदो० असंखे० भागो, अंतोमुहुत्तं । उक्क० एकत्तीसं सागरो० देसूणाणि । वावीस-इगिवीस० णत्थि अंतरं। भवण-वाण-जोदिसि अट्ठावीस-सत्तावीस-छव्वीस-चउवीसविह० जह एगसमओ, पलिदो० असंखे० भागो, अंतोमु० । उक्क० सगहिदी देसूणा। सोहम्मादि जाव उवरिमगेवजेत्ति अठ्ठावीस-सत्तावीस-छब्बीस-चउवीसवि० जह० एगसमओ, पलिदो० असंखे भागो, अंतोमु०। उक्क० सगढिदी देसूणा। वावीस-एकवीसविह० णत्थि अंतरं । पंचिंदिय-पचिंदियपज्ज०-तस-तसपज्ज० अठ्ठावीस-सत्तावीसछव्वीस-चउवीसविह० जह० एगसमओ, पलिदो० असंखे० भागो, अंतोमुहुत्तं । उक्क० ६३२१. मनुष्य, मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यनियोंमें अट्ठाईस प्रकृतिक स्थानका जघन्य अन्तर एक समय, सत्ताईस और छब्बीस प्रकृतिक स्थानका जघन्य अन्तर पल्यका असंख्यातवां भाग और चौबीस प्रकृतिक स्थानका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। तथा उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक तीन पल्य है। किन्तु तेईस और बाईससे लेकर आगे एक प्रकृतिकस्थान तक किसी भी स्थानका अन्तर नही होता है। ६३२२. देवोंमें अट्ठाईस प्रकृतिक स्थानका जघन्य अन्तर एक समय, सत्ताईस और छब्बीस प्रकृतिकस्थानका जघन्य अन्तर पल्यके असंख्यातवें भाग और चौबीस प्रकृतिक स्थानका अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। तथा उत्कृष्ट अन्तर देशोन इकतीस सागरोपम है। बाईस और इक्कीस प्रकृतिक स्थानका अन्तर नही होता है। भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें अट्ठाईस प्रकृतिकस्थानका जघन्य अन्तर एक समय, सत्ताईस और छब्बीस प्रकृतिक स्थानका जघन्य अन्तर पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण और चौबीस प्रकृतिक स्थानका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। तथा उत्कृष्ट अन्तर देशोन अपनी अपनी स्थितिप्रमाण है। सौधर्म स्वर्गसे लेकर उपरिम प्रैवेयक तकके देवोंमें अट्ठाईस प्रकृतिक स्थानका जघन्य अन्तर एक समय, सत्ताईस और छब्बीस प्रकृतिक स्थानका जघन्य अन्तर पल्यके असंख्यातवें भाग और चौबीस प्रकृतिक स्थानका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। तथा उत्कृष्ट अन्तर देशोन अपनी अपनी स्थितिप्रमाण है। बाईस और इक्कीस प्रकृतिक स्थानका अन्तर नहीं होता । पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रियपर्याप्त, त्रस, त्रस पर्याप्त जीवोंमें अट्ठाईस प्रकृतिक स्थानका जघन्य अन्तर एक समय, सत्ताईस और छब्बीस प्रकृतिकस्थानका जघन्य अन्तर पल्यके असंख्यातवें भाग और चौबीस प्रकृतिक स्थानका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । तथा उत्कृष्ट अन्तर देशोन अपनी अपनी स्थिति प्रमाण है। इतनी विशेषता है कि इन जीवोंमें छब्बीस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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