SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 305
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे . [पयडिविहत्ती २ जह० एगस०, उक्क० तेत्तीससागरोवमाणि सादिरेयाणि । सत्तावीस-छवीसविह० देवोधभंगो । णवरि छब्बीस० एकत्तीससागरो० सादिरेयाणि । चउवीसविह० जह अंतोमुहत्तं, उक्क० तेत्तीससागरो० सादिरेयाणि । एकवीसविह० जह० एगसमओ। उक्क० तेत्तीससागरो० सादिरेयाणि । सेस० ओघभंगो। णवरि वावीस० जह एगसमओ । अभव्वसिद्धि० छव्वीसवि० केव० १ अणादि-अपजवसिदो। ६३०७. खइयसम्मादिहीसु एकवीसादि जाव एयविहतिओत्ति ओघभंगो। वेदगसम्मादि० अहावीस-चउवीस-तेवीस-बावीसविह० आमिणि भंगो। णवरि चदुवीस० छावहिसागरो० देसूणाणि । उवसमे अठ्ठावीस-चउवीस० जहण्णुक्क० अंतोमुहुत्तं । सासणे अहावीसविह० के० १ जह० एगसमओ, उक्क० छावलियाओ । सम्मामि० उवसमसम्माइटिभंगो । मिच्छाइटि० मदिअण्णाणिभंगो । सण्णीसु छव्वीस० परिस० भगो । सेस० ओघभंगो । असण्णि० एइंदियभंगो। आहार० छव्वीसविह० के० १ जह० एगसमओ, उक्क० सगहिदी। सेस० ओघं जाणिदृण भाणिदव्वं । काल साधिक तेतीस सागर है। सत्ताईस और छब्बीस प्रकृतिकस्थानका काल सामान्य देवोंके समान जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि छब्बीस प्रकृतिकस्थानका उत्कृष्ट काल साधिक इकतीस सागर है। चौबीस प्रकृतिकस्थानका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर है। तथा इक्कीस प्रकृतिकस्थानका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर है। शेष स्थानोंका काल ओघके समान जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इनके बाईस प्रकृतिकस्थानका जघन्य काल एक समय है। अभव्योंके छब्बीस प्रकृतिकस्थानका काल कितना है ? अनादि-अनन्त है। ६३०७.क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंमें इक्कीस प्रकृतिक स्थानसे लेकर एक प्रकृतिक स्थान तक प्रत्येक स्थानका काल ओघके समान है। वेदक सम्यग्दृष्टियोंमें अट्ठाईस, चौबीस, तेईस और बाईस प्रकृतिक स्थानका काल मतिज्ञानियोंके समान है। इतनी विशेषता है कि चौबीस प्रकृतिकस्थानका उत्कृष्ट काल देशोन छयासठ सागर है। उपशमसम्यक्त्वमें अट्ठाईस और चौबीस प्रकृतिकस्थानका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। सासादनमें अट्ठाईस प्रकृतिकस्थानका काल कितना है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल छह आवली है। सम्यग्मिध्यादृष्टिका काल उपशम सम्यग्दृष्टिके समान जानना चाहिये। मिथ्यादृष्टिका काल कुमतिज्ञानीके समान जानना चाहिये । संज्ञी जीवोंमें छब्बीस प्रकृतिकस्थानका काल पुरुषवेदके समान है। शेष कथन ओषके समान है । असंज्ञी जीवोंमें एकेन्द्रियोंके समान है। आहारक जीवोंमें छब्बीस प्रकृतिकस्थानका काल कितना है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अपनी स्थिति प्रमाण है। शेष कथन ओघके समान कहना चाहिये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy