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________________ गा० २२ ] उत्तरपयडिविहत्तीए अंतराणुगमो १७३ ६१८४. अंतराणुगमेण दुविहो णिद्देसोओघेण आदेसेण य। तत्थ ओघेण अहावीसण्हं पयडीणं विहत्तियाणमंतरं केव० १ णत्थि अंतरं । एवं जाव अणाहारएत्ति वत्तव्वं । णवरि मणुस-अपज० अहावीसंपयडीणमंतर के० ? जह० एगसमओ, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो। एवं सासण-सम्मामि० वत्तव्वं । वेउव्वियमिस्स० छव्वीसंपय० विहत्ति० अंतरं के० १ जह० एगसमओ, उक्क० बारस मुहुत्ता । सम्मत्त-सम्मामि० विह० अंतरं केव० । जह० एगसमओ, उक्क० चउवीस मुहुत्ता। आहार०-आहारमिस्स० अहावीसंपय० विहत्ति० अंतरं के० ? जह० एगसमओ, उक्क० वासपुधत्तं । एवमअट्ठाईस प्रकृतियोंकी विभक्तिसे रहित होते हैं । इसलिये यहां ऐसे अपगतवेदी, अकषायी और यथाख्यातसंयत जीव विवक्षित हैं जो चौबीस प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले हों। ग्यारहवें गुण स्थान तरुके ही जीव ऐसे हो सकते हैं। पर उपशम श्रेणी और क्षपक श्रेणीपर जीव सर्वदा नहीं चढ़ते। अतः इस विवक्षासे ये तीन स्थान भी सान्तर है । इस प्रकार इन सान्तर मार्गणाओंमें और अपगतवेदी आदि स्थानोंमें सम्भव सब प्रकृतियोंका यथासम्भव काल जानना चाहिये जो ऊपर कहा ही है। इन मार्गणाओंमें नाना जीवोंकी अपेक्षा जो जघन्य और उत्कृष्ट काल खुद्दाबन्धमें बतलाया है वही यहां पर लिया गया है । उससे इसमें कोई विशेषता नहीं है, इसलिये यहां उसका खुलासा नहीं किया है। इस प्रकार नाना जीवोंकी अपेक्षा काल समाप्त हुआ। ६१८४.अन्तरानुयोगद्वारकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेश निर्देश । उनमेंसे ओघनिर्देशकी अपेक्षा अट्ठाईस प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले जीवोंका कितना अन्तरकाल है ? अन्तरकाल नहीं है, क्योंकि २८ प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले जीव सर्वदा पाये जाते हैं। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक यथायोग्य कथन करना चाहिये । इतनी विशेषता है कि लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्योंमें अट्ठाईस प्रकृतियों की विभक्तिवाले जीवोंका अन्तरकाल कितना है ? जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। इसी प्रकार सासादन सम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिध्यादृष्टि जीवोंके कहना चाहिये । वैक्रियिक मिश्रकाययोगी जीवों में छब्बीस प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले जीवोंका अन्तरकाल कितना है ? जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल बारह मुहूर्त है । सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वकी विभक्तिवाले जीवोंका अन्तरकाल कितना है ? जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल चौबीस मुहूर्त है। आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले जीवोंका अन्तरकाल कितना है ? जघन्य अन्तर काल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्व है। इसी प्रकार अकषायी और यथाख्यातसंयत जीवोंके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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