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________________ गा० २२ ] उत्तरपयडिविहत्ती भागाभागो विद्द० अविह० ओघभंगो । सेसाणं णत्थि भागाभागो । एवमसंजद० - तिण्णिलेस्साणं वत्तव्वं । पंचिदियतिरिक्खअपज० सम्मत - सम्मामिच्छत्ताणं णेरइयभंगो । सेसाणं णत्थि भागाभागो । एवं मणुसअपज० - सव्वविगलिंदिय-पंचिंदियअपज० -तस अपज०चत्तारिकाय बादर० सुहुम० पञ्जत्तापञ्जत्त० विहंग० वत्तव्वं । ० S १६३. मणुसगईए मणुस्सेसु मिच्छत्त- सोलसक० णवणोकसाय० विहसिया सब्जीवा• केवडिओ भागो ? असंखेजा भागा। अविहत्ति ० सव्वजीवा० केव० भागो ? असंखेजदिभागो । सम्मत्त सम्मामि० विह० सव्वजी० के० ? असंखेजदिभागो । अवि • सव्वजी० के० १ असंखेजा भागा । एवं पंचिंदिय पंचिंदि० पञ्ज० -तस-तसपञ्ज०पंचमण० - पंचवचि०-आभिणि०- सुद०- ओहि ० - चक्खु०- ओहिदंस०- सुक्क०-सणित्ति नुबन्धी चतुष्ककी विभक्तिवाले और अविभक्तिवाले तिर्यंचों का भागाभाग ओघ के समान है । तिर्यचों में शेष इक्कीस प्रकृतियोंकी अपेक्षा भागाभाग नहीं है । इसीप्रकार असंयत और कृष्ण आदि तीन लेश्यावाले जीवों के कहना चाहिये | पंचेन्द्रियतिर्यंच लब्ध्यपर्याप्तकों में सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वकी अपेक्षा भागाभाग नारकियोंके समान है। तथा शेष प्रकृतियोंकी अपेक्षा भागाभाग नहीं है । इसीप्रकार लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्य, सभी विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक, त्रस लब्ध्यपर्याप्तक, पृथिवी कायिक आदि चार स्थावर काय तथा इनके बादर और सूक्ष्म तथा प्रत्येक बादर और सूक्ष्मके पर्याप्त और अपर्याप्त तथा विभंगज्ञानी जीवोंके कहना चाहिये । विशेषार्थ - - सामान्य तिर्यंचोंका प्रमाण अनन्त है, अतः वहां मिध्यात्वादि सात प्रकृतियोंकी अपेक्षा ओघके समान भागाभाग बन जाता है। शेष इक्कीस प्रकृतियाँ इनके सर्वदा पाई जाती हैं। ऊपर जो असंयत आदि चार मार्गणाएँ गिनाई हैं वहां भी इसीप्रकार समझना । तथा पंचेन्द्रियतियेच लब्ध्यपर्याप्त आदि जितनी मार्गणाएँ ऊपर बतलाई हैं उनमें सम्यक्प्रकृति और सम्यगमिध्यात्व का सत्त्व और असत्त्व दोनों सम्भव हैं तथा इनका प्रमाण असंख्यात है अतः इनका भागाभाग सामान्य नारकियोंके समान कहा है । २० - ९१६३. मनुष्यगति में मनुष्यों में मिध्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायों की विभक्तिवाले मनुष्य सभी मनुष्योंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं । तथा अविभक्तिवाले मनुष्य सभी मनुष्योंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वकी विभक्तिवाले मनुष्य सभी मनुष्योंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यातवे भागप्रमाण हैं । तथा अविभक्तिवाले मनुष्य सभी मनुष्योंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं । इसीप्रकार पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रियपर्याप्त, त्रस, सपर्याप्त, पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, चक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी, शुक्ललेश्यावाले और संज्ञी जीवोंके कहना चाहिये । इतनी विशेषता Jain Education International १५३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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