________________
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ पयडिविहत्ती २
मुहुतं । सुहुमेहंदियअपजत्तएसु सम्मत्त-सम्मामि०विहत्ति० जह• एगसमओ, उक्क० अंतोमुहुत्तं । सेसाणं पयडीणं जह० खुद्दा०, उक्क० अंतोमुः।
६१२४. विगलिंदिएसु सम्मत्तसम्मामिच्छत्तविहत्ति० जह० एगसमओ, सेसाणं पयडीणं विहत्ति० जह० खुद्दा० । सव्वेसि पयडीणं विहत्ति० उक्क० संखेजाणि वस्ससहस्साणि । एवं विगलिंदियपजत्ताणं । णवरि, छब्बीस पयडीणं बिहत्ति० जह० है। तथा शेष छब्बीस प्रकृतियोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। सूक्ष्म एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकोंमें सम्यक्प्रकृति और सम्यमिथ्यात्वका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। तथा शेष प्रकृतियोंका जघन्य काल खुद्दाभवग्रहणप्रमाण और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है।
विशेषार्थ-यहां एकेन्द्रियोंमें और उनके भेद प्रभेदोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल बतलाया गया है। सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्व ये दो प्रकृतियां एकेन्द्रियोंके पाई भी जाती हैं और नहीं भी पाई जाती हैं। जिनके इनका उद्वेलना काल पूरा नहीं हुआ है उनके पाई जाती हैं और जिनके उद्वेलना काल पूरा हो गया है उनके नहीं पाई जाती हैं। अतः इनके जघन्य और उत्कृष्ट कालको छोड़कर शेष छब्बीस प्रकृतियोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल एकेन्द्रियोंकी जिस पर्यायमें लगातार जघन्य और उत्कृष्टरूपसे जितने काल तक एक जीवके रहनेका नियम है उतना है, जो ऊपर बतलाया ही है। तथा सम्यक्प्रकृति और सम्यमिथ्यात्वका जघन्य काल जो एक समय कहा है उसका कारण यह है कि जिसके सम्यक्प्रकृति और सम्यमिथ्यात्वकी उद्वेलनामें एक समय शेष रह गया है ऐसा कोई जीव जब मरकर विवक्षित एकेन्द्रियमें उत्पन्न होता है तब उसके उक्त दोनों प्रकृतियोंका जघन्य काल एक समय बन जाता है। तथा जिन एकेन्द्रियोंका उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भागसे अधिक है उनके इन दोनों प्रकृतियोंका उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भाग होता है। क्योंकि इतने कालके भीतर इन दोनों प्रकृतियोंकी उद्वेलना हो जाती है। और जिन एकेन्द्रियोंका उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भागके भीतर है उनके सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट काल भी उतना ही होता है, क्योंकि इन दोनों प्रकृतियोंकी उद्वेलना होनेके पहले ही वह पर्याय बदल जाती है।
६१२४.विकलेन्द्रियोंमें सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य काल एक समय और शेष प्रकृतियोंका जघन्य काल खुद्दाभवग्रहणप्रमाण है । तथा सभी प्रकृतियोंका उत्कृष्ट काल संख्यात हजार वर्ष है। इसी प्रकार विकलेन्द्रिय पर्याप्तक जीवोंके उक्त प्रकृतियोंका काल जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि इनके छब्बीस प्रकृतियोंका जघन्य काल खुद्दाभवग्रहणप्रमाण न होकर अन्तर्मुहूर्त है। विकलेन्द्रिय पर्याप्तकोंके समान विकलेन्द्रिय अपर्याप्त
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org