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________________ गा० २२ ] उत्तरपयडिविहत्तीए कालाणुगमो १०५ ६१२३. इंदियाणुवादेण एइंदिएसु सम्मत्त-सम्मामिच्छत्तविहत्ती० जह० एगसमओ, उक्क० पलिदोवमस्स असंखे०भागो। सेसाणं पयडीणं जह० खुद्दाभवग्गहणं, उक्क० अणंतकालोअसंखेजा पोग्गलपरियट्टा। एवं बादरेइंदियाणं। णवरि छब्बीसंपयडीणमुक्कस्सविहत्तीकालो अंगुलस्स असंखेजदिभागो, असंखेजाओ ओसप्पिणिउस्सप्पिणीओ। बादरेइंदियपज० सम्मत्त-सम्मामि० विहत्ती० जह० एगसमओ, उक्क० संखेजाणि वाससहस्साणि । सेसाणं छब्बीसपयडीणमेवं चेव, गवरि जहण्णविहत्तिकालो अंतोमुहुत्तं । बादरेइंदियअपजत्तएसु सम्मत्त-सम्मामि० जह० एगसमओ, सेसछब्बीसपयडीणं जह० खुद्दा०। सव्वपयडीणं विहत्तिकालो उक्क० अंतोमुहुतं । सुहुमेइंदिएसु सम्मत्त-सम्मामि० विहत्ती० जह० एगसमओ, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो। सेसपयडीणं विहत्तिक जह. खुद्दा०, उक्क० असंखेज्जा लोगा। सुहुमेइंदियपज० सम्मत्त-सम्मामि० विहात्ति० जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमुहुत्तं । सेसपयडीणं विहत्ति० जहण्णुक्कस्सेण अंतोकृतकृत्यवेदकसम्यग्दृष्टि मनुष्य जब नौ अनुदिश आदिमें उत्पन्न होता है तब उसके सम्यक् प्रकृतिका जघन्य काल एक समय भी बन जाता है। तथा कोई वेदकसम्यग्दृष्टि अनुदिश आदिमें उत्पन्न हुआ और वहां उसने अनन्तानुबन्धीकी अन्तर्मुहूर्त कालके भीतर विसंयोजना कर दी तो उसके अनन्तानुबन्धीका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त बन जाता है। ६१२३.इन्द्रिय मार्गणाके अनुवादसे एकेन्द्रियों में सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वकी विभक्तिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भाग है। तथा शेष छब्बीस प्रकृतियोंका जघन्य काल खुद्दाभवग्रहणप्रमाण और उत्कृष्ट अनन्तकाल है जिसका प्रमाण असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन है। इसी प्रकार बादर एकेन्द्रियों के जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इनके छब्बीस प्रकृतियोंका उत्कृष्ट काल अंगुलके असंख्यातवें भाग है। जिसका प्रमाण असंख्यात अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी है। बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकोंके सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात हजार वर्ष है। बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकोंके शेष छब्बीस प्रकृतियोंका काल भी सम्यक्प्रकृति और सम्यगमिथ्यात्वके कालके समान जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि जघन्य काल एक समय न होकर अन्तर्मुहूर्त है। बादर एकेन्द्रिय अपप्तिकोंमें सम्यक्प्रकृति और सम्यगमिथ्यात्वका जघन्य काल एक समय और शेष छब्बीस प्रकृतियोंका जघन्य काल खुद्दाभवग्रहण प्रमाण है। तथा सभी प्रकृतियोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। सूक्ष्म एफेन्द्रियोंमें सम्यक्प्रकृति और सम्यमिथ्यात्वका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भाग है। तथा शेष प्रकृतियोंका जघन्य काल खुद्दाभवग्रहणप्रमाण और उत्कृष्ट काल असंख्यात लोक है। सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकों में सम्यक्प्रकृति और सम्यमिथ्यात्वका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहर्त १४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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