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प्रस्तावना
संस्मर्ता स्वममोघवर्षनृपतिः पूतोऽहमोत्यलं
स श्रीमाञ्जिनसेनपूज्यभगवत्पादो जगन्मङ्गलम् ॥१०॥" - अमोघवर्षकी राजधानी मान्यखेट थी। निजाम राज्यमें शोलापुरसे ६० मील दक्षिण-पूर्व में जो मलखेड़ा ग्राम विद्यमान है, उसे ही मान्यखेट कहा जाता है। शक सं० ७३६ में इसका राज्यारोहण हुआ माना जाता है। इस हिसाबसे धवला उसके राज्यके दूसरे वर्षमें समाप्त हुई थी। जगत्तङ्ग अमोघवर्षके पिताका नाम था, और वाढणराय सम्भवतः अमोघवर्षका नाम था। इतिहासज्ञोंका मत है कि अमोघवर्ष नाम नहीं था किन्तु उपाधि थी। परन्तु कालान्तरमें रूढ़ हो जानेके कारण वही नाम हो गया। सम्भवतः इसीलिए धवलाकी प्रशस्तिमें अमोघवर्ष नाम नहीं पाया जाता क्योंकि धवलाकी समाप्तिके समय अमोघवर्षका राज्यभिषेक हुए थोड़ा ही समय बीता था, और अमोघवर्ष नामसे उसकी ख्याति नहीं हो पाई थी। किन्तु जयधवलाकी समाप्तिके समय अमोघवर्षको राज्य करते हुए २३ वर्ष हो रहे थे। अतः उस समय वे इसी नामसे प्रसिद्ध हो चुके होंगे। यही कारण है कि जयधवलामें अमोघवर्ष राजेन्द्रके राज्यका उल्लेख मिलता है।
धवलाकी प्रशस्तिमें धवलाके रचनास्थानका निर्देश नहीं किया। किन्तु जयधवलाकी प्रशस्तिमें वादग्रामपुरमें जयधवलाकी समाप्ति होनेका उल्लेख किया है और यह भी लिखा है कि वाटग्रामपुर गुर्जरार्य द्वारा पालित था। आगे प्रशस्तिके श्लोक नं० १२ से १५ तकमें गुर्जरनरेन्द्रकी बड़ी प्रशंसा की है और बतलाया है कि गुर्जरनरेन्द्रकी चन्द्रमाके समान स्वच्छ कीर्तिके मध्यमें पड़कर गुप्तनरेश शककी कीर्ति मच्छरके समान प्रतीत होती है। यह गुर्जर नरेन्द्र कौन था ? और उससे पालित वाटग्रामपुर कहाँ है ?
यह तो स्पष्ट ही है कि वह कोई गुजरातका राजा था, और उससे पालित वाटग्राम भी सम्भवतः गुजरातका ही कोई ग्राम होना चाहिये। किन्तु वह गुर्जरनरेन्द्र अमोघवर्ष ही था, या कोई दूसरा था ?
अमोघवर्षके पिता गोविन्दराज तृतीयके समयके श० सं०७३५ के एक ताम्रपत्रसे प्रतीत होता है कि उसने लाटदेश-गुजरातके मध्य और दक्षिणी भागको जीतकर अपने छोटे भाई इन्द्रराजको वहाँका राज्य दे दिया था। इसी इन्द्रराजने गुजरातमें राष्ट्रकूटोंकी दूसरी शाखा स्थापित की। शक सं० ७५७ का एक ताम्रपत्र बड़ौदासे मिला है। यह गुजरातके राजा महासमन्ताधिपति राष्ट्रकूट ध्रुवराजका है। इससे प्रकट होता है कि अमोघवर्षके चाचाका नाम इन्द्रराज था
और उसके पुत्र कर्कराजने बगावत करने वाले राष्ट्रकूटोंसे युद्ध कर अमोघवर्षको राज्य दिलवाया था। कुछ विद्वानोंका अनुमान है कि लाटके राजा ध्रवराज प्रथमने अमोघवर्षके खिलाफ कछ गड़बड़ मचाई थी। इसीसे अमोघवर्षको उसपर चढ़ाई करनी पड़ी और सम्भवतः इसी युद्ध में वह मारा गया। हमारा अनुमान भी ऐसा ही है। यद्यपि अमोघवर्षसे पहले उसके पिता गोविन्दराज तृतीयने ही गुजरातके कुछ भागको जीतकर अपने छोटे भाई इन्द्रराजको वहाँका राजा बना दिया था, किन्तु अमोघवर्ष के राज्यकाल में लाटके राजा ध्रुवराजके द्वारा बगावत कीजानेपर अमोघवर्षको उसपर चढ़ाई करनी पड़ी और सम्भवतः गुजरात उसके राज्यमें आगया। यह घटना जयधवलाकी समाप्तिके कुछ ही समय पहलेकी होनी चाहिये; क्योंकि ध्रुवराज प्रथमका ताम्रपत्र श० सं० ७५७ का है और जयधवलाकी समाप्ति ७५६ श० सं० में हुई है। डा० श्राल्टे
(१) भा० प्रा० रा०, भा० ३, पृ० ३८ । (२) भा० प्रा०रा०, भा० ३, पृ० ४० ।
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