SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 466
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गा० १३-१४ ] अणियोगद्दारेहि कसायपरूवणा रोहादो। तदो ण कस्स वि कसाओ त्ति सिद्धं । * केण कसाओ? ६२८४. 'स्वमुपगतं स्वालम्बनं च कषति हिनस्ति इति कषायः' इति व्युत्पत्तेः कर्टसाधना कषायः। एवं णेगम-संगह-ववहार-उजुसुदाणं; तत्थं कज-कारणभावसंभवादो। तिहं सद्दणयाणं ण केण वि कसाओ; तत्थ कारणेण विणा कज्जुप्पत्तीए । अहवा, ओदइएण भावेण कसाओ। एदं णेगमादिचउण्हं णयाणं । तिण्हं सद्दणयाणं पारिणामिएण भावेण कसाओ; कारणेण विणा कज्जुप्पत्तीदो । ण च देसादिणियमो कारणस्स अत्थित्तसाहओ; तिसु वि सद्दणएसु देसादीणमभावादो । कारणका होता है, सो भी कहना ठीक नहीं है, क्योंकि ऐसी अवस्था में कार्य-कारणका परस्परमें सर्वथा अभेद होनेसे कारण अपने कार्यमें प्रविष्ट हो जायगा और ऐसा होनेसे जब उसकी सत्ता ही नष्ट हो जायगी तो वह स्वामी नहीं हो सकेगा । इसलिये उसे स्वामी माननेमें विरोध आता है। इसलिये तीनों शब्दनयोंकी अपेक्षा कषाय किसीके भी नहीं होती है अर्थात् कषायका स्वामी कोई नहीं है, यह सिद्ध हुआ । विशेषार्थ-'कषाय किसके होती है' इसके द्वारा कषायका स्वामी बतलाया है। नगमादि चार नयोंकी अपेक्षा कषायका स्वामी जीव है । और शब्दादि नयोंकी अपेक्षा कषायका स्वामी कोई भी नहीं है । ऋजुसूत्र नयमें स्थूल ऋजुसूत्रनयकी अपेक्षा कषायका स्वामी जीव है। * किस साधनसे कषाय होती है ? ६२८४.जो अपनेको और प्राप्त हुए अपने आलंबनको कसती है अर्थात् घातती है वह कषाय है इस व्युत्पत्तिके अनुसार कषाय शब्द कर्तृसाधन है। यह नैगम, संग्रह, व्यवहार और ऋजुसूत्रनयकी अपेक्षा समझना चाहिये, क्योंकि इन नयोंमें कार्यकारणभाव संभव है। शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत इन तीनों शब्दनयोंकी अपेक्षा कषाय किसी भी साधनसे उत्पन्न नहीं होती है, क्योंकि इन नयोंकी दृष्टि में कारणके बिना ही कार्यकी उत्पत्ति होती है। अथवा, कषाय औदयिकभावसे होती है। यह नैगम आदि चार नयोंकी अपेक्षा समझना चाहिये । शब्द आदि तीनों नयोंकी अपेक्षा तो कषाय पारिणामिक भावसे होती है, क्योंकि इन नयोंकी दृष्टिमें कारणके बिना कार्यकी उत्पत्ति होती है। यदि कहा जाय कि देशादिकका नियम कारणके अस्तित्वका साधक है अर्थात् कषायमें देशादिकका नियम पाया जाता है अतः उसका कारण होना चाहिये, सो भी बात नहीं है, क्योंकि तीनों ही शब्दनयोंमें देशादिक नहीं पाये जाते हैं। विशेषार्थ-कषाय किस साधनसे होती है। इसके द्वारा कषायका साधन बतलाया (१) तत्थ कारण-स० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001407
Book TitleKasaypahudam Part 01
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1944
Total Pages572
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Karma, H000, & H999
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy