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________________ गा०१३-१४] - कसाए णिक्खेवपरूवणा * तव्वदिरित्तं दव्वं दव्वाणि वा णोकसाओ।' ६२७४. तत्तो कसायरसादो वदिरित्तं तव्वदिरित्तं दव्वं दव्याणि वा णोकसाओ। एदस्स सुत्तस्स अत्थे भण्णमाणे जहा पुव्विल्लस्स सुत्तस्स अत्थो परूविदो तहा परूवेयव्यो । * एवं णेगम-संगहाणं । ६२७५. एसा जा परूवणा सा णेगम-संगहाणं दडव्वा; तत्थ संगहसरूवसंववहारदंसणादो। * ववहारणयस्स कसायरसं दव्वं कसाओ । तव्वदिरित्तं दव्वं णोकसाओ। कसायरसाणि दव्वाणि कसाया, तव्वदिरित्ताणि दव्वाणि णोकसाया। ६२७६. एदस्स सुत्तस्स अत्थो वुच्चदे। तं जहा, जाईए वत्तीए वा जं दव्वमेगवयणेण णिद्दिष्टं तमेगवयणेणेव कसाओ त्ति वत्तव्वं; 'कसाया' त्ति भण्णमाणे संदेहुप्प * कषायरससे रहित एक द्रव्य या अनेक द्रव्य नोकषाय है। ६२७४. इस सूत्रमें तद्व्यतिरिक्तका अर्थ कषाय रससे रहित किया है, इसलिये यह अर्थ हुआ कि कषायरससे रहित एक द्रव्य या अनेक द्रव्य नोकषाय है। जिस प्रकार इससे पहले सूत्रका अर्थ कहा है उसीप्रकार इस सूत्रके अर्थका भी प्ररूपण करलेना चाहिये। अर्थात् द्रव्याणि पदके साथ एकवचन नोकषाय शब्दका सम्बन्ध, स्यात् पदकी संघटना तथा उसमें सप्तभंगीका कथन इत्यादि वर्णन पूर्व सूत्रमें वर्णित क्रमके अनुसार यहां भी समझ लेना चाहिये। * यह कथन नैगम और संग्रहनयका विषय है। ६२७५. ऊपर जो यह प्रतिपादन कर आये हैं कि जिसका या जिनका रस कसैला है ऐसा एक द्रव्य या अनेक द्रव्य कषाय है और इनसे अतिरिक्त नोकषाय है, यह कथन नैगम और संग्रहनयका विषय जानना चाहिये, क्योंकि इस कथनमें संग्रहरूप व्यवहार देखा जाता है। * व्यवहारनयकी अपेक्षा जिसका रस कसैला है ऐसा एक द्रव्य कषाय है और उससे अतिरिक्त द्रव्य नोकषाय है। तथा जिनके रस कसैले हैं ऐसे अनेक द्रव्य कषाय हैं और उनसे अतिरिक्त द्रव्य नोकषाय हैं। $ २७६. अब इस सूत्रका अर्थ कहते हैं । वह इस प्रकार है जातिकी अपेक्षा अथवा व्यक्तिकी अपेक्षा जो द्रव्य एक वचनरूपसे कहा गया है उसे एक वचनरूपसे ही कषाय कहना चाहिये, क्योंकि उसे 'कषायाः' इसप्रकार बहुवचन रूपसे कहने पर सन्देह हो सकता है अथवा व्यवहार में संकरदोषका प्रसंग आ सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001407
Book TitleKasaypahudam Part 01
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1944
Total Pages572
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Karma, H000, & H999
File Size14 MB
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