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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पेज्जदोसविहत्ती ? सरिसत्तवदिरित्ता के वा दव्वादिभेया त्ति समाणमेयं । पुधभूददव्वावहाइ सरिसत्तं अपुधभूददव्वावठाइ एयत्तं चे; ण; सव्वहा पुधभूदेसु सरिसत्ताणुववत्तीदो। दव्वस्स कथं कसायववएसो; ण; कसायवदिरित्तदव्वाणुवलंभादो । अकसायं पि दव्वमत्थि त्ति चे होदु णाम; किंतु "अप्पियदव्वं ण कसायादो पुधभूदमत्थि' ति भणामो । तेण 'कसायरसं दव्वं दव्वाणि वा सिया कसाओ' त्ति सिद्धं । ६२७१. सुत्तेण अउत्तो सियासद्दो कथमेत्थ उच्चदे ? ण; सियासद्दपओएण विणा सव्वपओआणं अउत्ततुल्लत्तप्पसंगादो । तं जहा, कसायसद्दो पडिवक्खत्थं सगत्थादो ओसारिय सगत्थं चेव भणदि पईवो व्व दुस्सहावत्तादो । अत्रोपयोगिनौ श्लोकोकुछ नहीं है तो यहाँ भी ऐसा कहा जा सकता है कि सहशतासे पृथग्भूत वे द्रव्यादिभेद क्या हैं ? अर्थात् कुछ भी नहीं हैं। इसलिये जिसप्रकार एकत्वसे भिन्न ऊपरला भाग आदि नहीं पाये जाते हैं उसीप्रकार सदृशतासे भिन्न द्रव्यादिभेद नहीं पाये जाते हैं; अतः दोनों पक्षमें शङ्कासमाधान समान है। शंका-सदृशता पृथग्भूत द्रव्योंमें रहती है और एकता अपृथग्भूत द्रव्योंमें पाई जाती है ? समाधान-नहीं, क्योंकि जो द्रव्य सर्वथा भिन्न हैं उनमें सदृशता नहीं बन सकती है। शंका-द्रव्यको कषाय कैसे कहा जा सकता है ? समाधान-क्योंकि कषायरससे भिन्न द्रव्य नहीं पाया जाता है, इसलिये द्रव्यको कषाय कहने में कोई आपत्ति नहीं आती है । शंका-कषायरससे रहित भी द्रव्य पाया जाता है ऐसी अवस्थामें द्रव्यको कषाय कैसे कहा जा सकता है ? समाधान-कषायरससे रहित द्रव्य पाया जाओ, इसमें कोई आपत्ति नहीं है, किन्तु यहां जिस द्रव्यके विचारकी मुख्यता है वह कषायरससे भिन्न नहीं है, ऐसा हमारा कहना है। इसलिये जिसका या जिनका रस कसैला है उस द्रव्यको या उन द्रव्योंको कथंचित् कषाय कहते हैं यह सिद्ध हुआ। ६२७१. शंका-'स्यात्' शब्द सूत्र में नहीं कहा है फिर यहां क्यों कहा है ? समाधान-क्योंकि यदि 'स्यात्' शब्दका प्रयोग न किया जाय तो सभी वचनोंके व्यवहारको अनुक्ततुल्यत्वका प्रसंग प्राप्त होता है अर्थात् स्यात् शब्दके प्रयोगके बिना सभी वचन न कहे हुएके समान हैं। आगे कषाय शब्दका उदाहरण देकर उसीका खुलासा करते हैं-यदि कषाय शब्दके साथ स्यात् शब्दका प्रयोग न किया जाय तो वह कषाय शब्द अपने वाच्यभूत अर्थसे प्रतिपक्षी अर्थोंका निराकरण करके अपने अर्थको ही कहेगा, क्योंकि वह दीपककी तरह दो स्वभाववाला है। अर्थात् जिसप्रकार दीपक दो काम करता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001407
Book TitleKasaypahudam Part 01
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1944
Total Pages572
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Karma, H000, & H999
File Size14 MB
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