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________________ गा० १३-१४ ] कसाए णिक्खैवपरूवणा ९ २३६. कारणं पुव्वं परूविदं त्ति णेह परूविजदे | * तिन्हं संद्दणयाणं णामकसाओ भावकसाओ च । २४०. एदं पित्तं सुगमं । $ २४१. णामकसाओ ठवर्णकसाओ आगमदव्वकसाओ णोआगमजाणुगसरीरकसाओ भवियकसाओ च सुगमो त्ति कट्टु एदेसिमत्थमभणिय णोआगमतव्वदिरित्तदव्वकसायरस अत्थपरूवणमुत्तरमुत्तं भणदि * णोआगमैदव्वकसाओ, जहा सज्जकसाओ सिरिसकसाओ एवमादि । ६२४२. सर्जी नाम वृक्षविशेषः, तस्य कषायः सर्जकषायः । शिरीषस्य कषायः तथा स्थापनाकषायको स्वीकार नहीं करता है । ९२३१. ऋजुसूत्रनय इन तीनों कषायोंको स्वीकार क्यों नहीं करता है इसका कारण पहले कह आये हैं, इसलिये यहाँ उसका कथन नहीं करते हैं । अर्थात् समुत्पत्तिककषायका प्रत्ययकषाय में और आदेशकषायका स्थापनाकषायमें अन्तर्भाव हो जाता है । तथा स्थापनानिक्षेप ऋजुसूत्रनयका विषय नहीं है इसलिये इन तीनों कषायोंको छोड़कर नामकषाय, द्रव्यकषाय, प्रत्ययकषाय, रसकषाय और भावकषाय इन शेष कषायोंको ऋजुसूत्रनय स्वीकार करता है । २८५ * शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत इन तीनों शब्दनयोंका नामकषाय और भावकषाय विषय है | $ २४०. यह सूत्र भी सरल है । २४१. नामकषाय, स्थापनाकषाय, आगमद्रव्यकषाय, ज्ञाय कशरीरनोआगमद्रव्यकषाय और भाविनोआगमद्रव्यकषाय इनका स्वरूप सुगम है ऐसा समझकर इनके स्वरूपका कथन नहीं करके नोकर्म तद्व्यतिरिक्तनोआगमद्रव्यकषाय के स्वरूपका प्ररूपण करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं * सर्जकषाय, शिरीषकषाय इत्यादि नोकर्मतद्वयतिरिक्त नोआगमद्रव्यकषाय समझना चाहिये | $ २४२. सर्ज साल नामके वृक्षविशेषको कहते हैं । उसके कसैले रसको सर्जकषाय कहते हैं । सिरस नामके वृक्षके कसैले रसको शिरीषकषाय कहते हैं । (१) " शब्दस्तु नाम्नोऽपि कथञ्चिद् भावान्तर्भावात् नामभावाविच्छतीति ।" आचा० नि० शी० गा० १९० । (२) "सद्भावासद्भावरूपा प्रतिकृतिः स्थापना । कृतभीमभ्रू कुटयुत्कटललाटघटित त्रिशलरक्तास्यनयनसन्दष्टाधरस्पन्दमानस्वेदस लिलचित्र पुस्ताद्यक्षवराटकादिगतेति ।" - भाचा० नि० शी० गा० १९० । (३) “सज्जकसायाइओ नोकम्मदव्वओ कसाओ यं ।" - विशेषा० गा० २९८२) आचा० नि० शी० गा० १९० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001407
Book TitleKasaypahudam Part 01
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1944
Total Pages572
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Karma, H000, & H999
File Size14 MB
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