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________________ गा० १३-१४ ] पेज्जे क्खेिवपरूवणा २७३ प्रिय द्रव्य है । पित्तज्वरवालेके स्वास्थ्य और आनन्दका कारण होनेसे दाख हित और सुखरूप द्रव्य है । पित्तज्वरसे पीड़ित रोगीको नीम हित और प्रिय द्रव्य है । आमव्याधिवाले मनुष्यको दूध सुख और प्रिय द्रव्य है । तथा नीरोग मनुष्यको गुड़ आदिक हित, सुख और प्रिय द्रव्य है ॥ १२० ॥" विशेषार्थ - नोआगम द्रव्य निक्षेपमें तद्व्यतिरिक्त पदसे ज्ञायकशरीर और भावी से अतिरिक्त पदार्थों का ग्रहण किया है । इसके कर्म और नोकर्म इसप्रकार दो भेद हैं । कर्मतद्व्यतिरिक्त नोआगम द्रव्य निक्षेपका कथन ऊपर किया जा चुका है । नोकर्म पदसे सहकारी कारणोंका ग्रहण किया जाता है इसलिये यहाँ नोकर्मसे किन पदार्थोंका ग्रहण करना चाहिये यह बताया गया है । पेज्ज और द्वेषके भेदसे कषाय दो प्रकारकी है । द्वेषका कथन आगे किया गया है । प्रकृतमें पेज्जकी अपेक्षासे ही नोकर्म बतलाये गये हैं । पेज्जमें कहीं हितकी. कहीं सुखकी, कहीं प्रियकी, कहीं हित और सुखकी, कहीं हित और प्रियकी, कहीं सुख और प्रियकी तथा कहीं तीनोंकी अपेक्षा रहती है, अतएव इनके सहकारी द्रव्य भी कहीं हितरूप, कहीं सुख रूप, कहीं प्रियरूप, कहीं हित-सुख, हित- प्रिय या सुखप्रियरूप और कहीं तीनों रूप कहे जाते हैं। वीरसेनस्वामीने उदाहरण देकर इसी बात को अच्छी तरह समझा दिया है । आगे इसी विषयको और स्पष्ट करनेके लिये कोष्ठक दिया जाता है 1 नोकर्म विवक्षा कड़वी तूंबड़ी आदि पित्तज्वरकी शान्तिकी अपेक्षा होने पर भूखशान्तिकी विवक्षा में प्रेमकी विवक्षा होने पर ४ ५ नोकर्मके अपेक्षाकृत नाम हित पेज्ज ७ सुखपेज्ज मियपेज्ज हित सुखपेज्ज हित- प्रियपेज्ज सुस्वादु भात आदि पुत्रादि दाख आदि नीम आदि Jain Education International सुख - प्रियपेज्ज हित-प्रिय सुखपेज्ज गुड़ आदि यहाँ पेज्ज भावके नोकर्म दिखाये गये हैं, और पेज्जभाव हित, सुख तथा प्रिय इन तीनरूप या इनके संयोगरूप ही प्रकट होता है, अतः इस दृष्टिसे पेज्जभावकी बाह्यकारण ३५ दूध आदि स्वास्थ्य और आनन्दकी विवक्षा होने पर For Private & Personal Use Only तिक्तप्रियके पित्तज्वरके दूर करनेकी विवक्षा होने पर मधुरप्रियके आमव्याधिके दूर करनेकी विवक्षा होने पर स्वस्थ पुरुषके तीनोंकी अपेक्षा होने पर www.jainelibrary.org
SR No.001407
Book TitleKasaypahudam Part 01
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1944
Total Pages572
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Karma, H000, & H999
File Size14 MB
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