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________________ २६४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पेज्जदोस विहत्ती १ कणि; अप्पिदवंजणपज्जाय अवडाणकालरस दव्वस्स वि वट्टमाणत्तणेण गहणादो । सव्वे (सुद्धे) पुण उजुमुदे णत्थि दव्वं .. 'य पजाय पणाये तदसंभवादो' । * [ सद्दणयस्स ] णामं भावो च । $ २१४. दव्वणिक्खेवो णत्थि, कुदो ? लिंगदे ( ? ) सद्दवाचियाणमेयत्ताभावे दव्वाभावादो | वंजणपजाए पडुच्च सुद्धे वि उजुसुदे अस्थि दव्वं, लिंगसंखीकालकारयअवस्थानकालरूप द्रव्यको भी ऋजुसूत्रनय वर्तमानरूपसे ही ग्रहण करता है, अतः व्यंजनपर्यायकी अपेक्षा द्रव्यको ग्रहण करनेवाले नयको ऋजुसूत्रनय माननेमें कोई आपत्ति नहीं है । परन्तु शुद्ध ऋजुसूत्र नयमें द्रव्यनिक्षेप नहीं पाया जाता है, क्योंकि शुद्ध ऋजुसूत्र में अर्थपर्यायकी प्रधानता रहती है, अतएव उसमें द्रव्यनिक्षेप संभव नहीं है । विशेषार्थ - ऋजुसूत्रनय दो प्रकारका है, शुद्ध ऋजुसूत्रनय और अशुद्ध ऋजुसूत्रनय । उनमें से शुद्ध ऋजुसूत्रनय एक समयवर्ती वर्तमान पर्यायको ग्रहण करता है और अशुद्ध ऋजुसूत्रनय अनेककालभावी व्यंजनपर्यायको ग्रहण करता है । तथा द्रव्यनिक्षेपमें सामान्यकी मुख्यता है, इसलिये शुद्ध ऋजुसूत्रनय द्रव्यनिक्षेपको विषय नहीं करता है यह ठीक है । फिर भी अशुद्ध ऋजुसूत्र नयका विषय द्रव्यनिक्षेप हो जाता है, क्योंकि व्यंजनपर्यायकी अपेक्षा चिरकालतक स्थित रहनेवाले पदार्थको अशुद्ध ऋजुसूत्रका विषय मान लेने में कोई बाधा नहीं आती है । इसतरह ऋजुसूत्रके विषय में कालभेदकी आपत्ति भी उपस्थित नहीं होती है, क्योंकि वह व्यंजन पर्यायको वर्तमानरूपसे ही ग्रहण करता है । तो भी वह व्यंजन पर्याय चिरकालतक अवस्थित रहती है इसलिये अपने अन्तर्गत अनेक अर्थ और उपव्यंजन पर्यायोंकी अपेक्षा वह द्रव्य भी कही जाती है । अतएव ऋजुसूत्रनय में द्रव्यनिक्षेप बन जाता है । * शब्द समभिरूढ और एवंभूत इन तीनों शब्द नयोंके नामनिक्षेप और भावनिक्षेप विषय हैं ॥ $२१४. पर्यायार्थिक नयोंमें स्थापना निक्षेप संभव नहीं है यह तो ऋजुसूत्र नयका विषय दिखलाते हुए स्पष्ट कर ही आये हैं। परन्तु शब्द नय में द्रव्यनिक्षेप भी संभव नहीं है, क्योंकि इस नयकी दृष्टिमें लिङ्गादिककी अपेक्षा शब्दोंके वाच्यभूत पदार्थो में एकत्व नहीं पाया जाता है, इसलिये उनमें द्रव्यनिक्षेप संभव नहीं है । किन्तु व्यंजन पर्यायकी अपेक्षा शुद्ध ऋजुसूत्र में भी द्रव्यनिक्षेप पाया जाता है, क्योंकि ऋजुसूत्र नय लिङ्ग, संख्या, काल, ( १ ) - व्वं वट्टमाणये पज्जा - अ०, आ० ।-व्वं (त्रु० ४) य पज्जा - स०, ता० । (२) - दो (त्रु० ५ ) णामं ता०, स० । - दो भावणिक्खेवाणं णामं अ० आ० । “सद्दसमभिरूढएवंभूदणएसु वि णामभावणिक्खेवा हवंति तेसि चेय तत्थ संभवादो ।" - ष० सं० पृ० १६ । (३) विग्गादे सद्दवाचियाण मेयत्ताभावे स० । ( ४ ) - संखकारकाल- आ० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001407
Book TitleKasaypahudam Part 01
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1944
Total Pages572
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Karma, H000, & H999
File Size14 MB
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