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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे . [ पेज्जदोसविहत्ती ? नपुंसके पुल्लिङ्गाभिधानम्-द्रव्यं परशुरिति । सङ्ख्याव्यभिचारः-एकत्वे द्वित्वम्-नक्षत्रं पुनर्वसू इति । एकत्वे बहुत्वम्-नक्षत्रं शतभिषज इति । द्वित्वे एकत्वम्-गोधौ (गोदौ) ग्राम इति । द्वित्वे बहुत्वम्-पुनर्वसू पंचतारका इति । बहुत्वे एकत्वम्-आम्रा वनमिति । बहुत्वे द्वित्वम्-देवमनुष्या उभी राशी इति । कालव्याभिचार:-विश्वदृश्वाऽस्य पुत्रो अतएव नपुंसकलिङ्गके स्थानमें स्त्रीलिङ्ग शब्दका कथन करनेसे लिङ्गव्यभिचार है । 'पटो वस्त्रम्' पट वस्त्र है। यहाँ पर पट शब्द पुलिङ्ग और वस्त्र शब्द नपुंसकलिङ्ग है, अतः पुलिङ्ग शब्दके स्थानमें नपुंसकलिङ्ग शब्दका कथन करनेसे लिङ्गव्यभिचार है। 'द्रव्यं परशुः, फरसा एक द्रव्य है । यहाँ पर द्रव्य शब्द नपुंसकलिङ्ग और परशु शब्द पुलिङ्ग है, अतएव नपुंसकलिङ्ग शब्दके स्थानमें पुलिङ्ग शब्दका कथन करनेसे लिङ्गव्यभिचार है। ____एकवचन आदि के स्थान पर द्विवचन आदिका कथन करना संख्याव्यभिचार है। जैसे-'नक्षत्रं पुनर्वसू' पुनर्वसू नक्षत्र हैं। यहाँ नक्षत्र शब्द एकवचनान्त और पुनर्वसू शब्द द्विवचनान्त है, इसलिये एकवचनके साथमें द्विवचनका कथन करनेसे संख्याव्यभिचार है। 'नक्षत्रं शतभिषजः' शतभिषज नक्षत्र हैं। यहां पर नक्षत्र शब्द एकवचनान्त और शतभिषज् शब्द बहुवचनान्त है। इसलिये एकवचनके साथमें बहुवचनका कथन करनेसे संख्याव्यभिचार है । ' गोदौ ग्रामः' गोदौ नामका एक गाँव है। यहाँ पर गोद शब्द द्विवचनान्त और ग्राम शब्द एकवचनान्त है, इसलिये द्विवचनके साथमें एकवचनका कथन करनेसे संख्याव्यभिचार है। 'पुनर्वसू पंचतारकाः' पुनर्वसू पाँच तारकाएं हैं । यहाँ पर पुनर्वसु शब्द द्विवचनान्त और तारका शब्द बहुवचनान्त है, इसलिये द्विवचनके साथ में बहुवचनका कथन करनेसे संख्याव्यभिचार है। 'आम्राः वनम्' आमोंका वन है। यहाँ पर आम्र शब्द बहुवचनान्त और वन शब्द एकवचनान्त है। अतः बहुवचनके साथमें एकवचनका कथन करनेसे संख्याव्यभिचार है। 'देवमनुष्या उभौ राशी' देव और मनुष्य ये दो राशि हैं। यहाँ पर देव-मनुष्य शब्द बहुवचनान्त और राशि शब्द द्विवचनान्त है, इसलिये बहुवचनके साथमें द्विवचनका कथन करनेसे संख्याव्यभिचार है। भूत आदि कालके स्थानमें भविष्यत् आदि कालका कथन करना कालव्यभिचार है। जैसे-'विश्वदृश्वास्य पुत्रो जनिता' जिसने समस्त विश्वको देख लिया है ऐसा इसका पुत्र होगा। 'विश्वदृश्वा' यह भूतकालीन प्रयोग है और 'जनिता' यह भविष्यत्कालीन (१) "आयुधं परशुरिति"-ध० सं० १० ८७ । "द्रव्यं परशुरिति”-राजवा० ११३३ । ध० आ० प० ५४३ । (२) "द्वित्वे एकत्वं गोदौ ग्राम इति"-राजवा० ११३३ । ध० सं० ५०८८ । (३) "विश्वदश्वाऽस्य पुत्रो जनितेति भविष्यदर्थे भूतप्रयोगः । भाविकृत्यमासीदिति भूतार्थे भविष्यत्प्रयोगः ।"-"ध० आ० ५० ५४३। ध० सं० ५० ८८ । 'ये हि वैयाकरणाव्यवहारनयानुरोधेन धातुसम्बन्धे प्रत्ययाः इति सूत्रमारम्य विश्वदृश्वाऽस्य पुत्रो जनिता भाविकृत्यमासीदित्यत्र कालभेदेप्येकपदार्थमादृता यो विश्वं द्रक्ष्यति सोऽपि पुत्रो जनितेति भविष्यत्कालेन अतीतकालस्याभेदोऽभिमतः तथा व्यवहारदर्शनादिति; तत्र यः परीक्षायाःमूलक्षतेः(?) कालभेदेऽप्यर्थस्याभेदेऽतिप्रसङ्गात, रावणशङ्खचक्रवर्तिनोरप्यतीतानागतकालयोरेकत्वापत्तेः। आसीद्रावणो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001407
Book TitleKasaypahudam Part 01
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1944
Total Pages572
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Karma, H000, & H999
File Size14 MB
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