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________________ गा० १३-१४ ] णयपरूवणं २२६ अभावाद्भावोत्पत्तिविरोधात् । न पूर्वविनाशोत्तरोत्पादयोः समानकालतापि कार्यकारणभावसमर्थिका । तद्यथा-नातीतार्थाभावत उत्पद्यते; भावाभावयोः कार्यकारणभावविरोधात् । न तद्भावात् खकाल एव तस्योत्पत्तिप्रसङ्गात् । किञ्च, पूर्वक्षणसत्ता यतः समानसन्तानोत्तरार्थक्षणसत्त्वविरोधिनी ततो न सा तदुत्पादिका विरुद्धयोस्सत्तयोरुत्पाद्योत्पादकभावविरोधात् । ततो निर्हेतुक उत्पाद इति सिद्धम् । ६१६३. नास्य विशेषणविशेष्यभावोऽपि। तद्यथा-न स तावद्धिनयोः; अव्यवस्थापत्तेः। नाभिन्नयोः; एकस्मिंस्तद्विरोधात् । न भि (नाभि) नयोरस्य नयस्य संयोगः पदार्थ पहले क्षणमें तो उत्पन्न ही होता है, अतः वह दूसरे क्षणमें कार्यको उत्पन्न करेगा और इसलिये उसे कमसे कम दो क्षण तक तो ठहरना ही होगा। किन्तु वस्तुको दोक्षणवर्ती माननेसे ऋजुसूत्र नयकी दृष्टिसे अभिमत क्षणिकवाद नहीं बन सकता है । तथा जो नाशको प्राप्त हो गया है वह उत्पन्न करता है, यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि अभावसे भावकी उत्पत्ति मानने में विरोध आता है। तथा पूर्व क्षणका विनाश और उत्तर क्षणका उत्पाद इन दोनोंमें कार्यकारण भावकी समर्थन करनेवाली समानकालता भी नहीं पाई जाती है। इसका स्पष्टीकरण इसप्रकार है-अतीत पदार्थके अभावसे तो नवीन पदार्थ उत्पन्न होता नहीं है, क्योंकि भाव और अभाव इन दोनोंमें कार्यकारणभाव मानने में विरोध आता है। अतीत अर्थक सद्भावसे नवीन पदार्थका उत्पाद होता है, यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि ऐसा मानने पर अतीत पदार्थके सद्भावरूप कालमें ही नवीन पदार्थकी उत्पत्तिका प्रसंग प्राप्त होता है। दूसरे, चूंकि पूर्व क्षणकी सत्ता अपनी सन्तानमें होनेवाले उत्तर अर्थक्षणकी सत्ताकी विरोधिनी है, इसलिये पूर्वक्षणकी सत्ता उत्तर क्षणकी सत्ताकी उत्पादक नहीं हो सकती है, क्योंकि विरुद्ध दो सत्ताओंमें परस्पर उत्पाद्य-उत्पादकभावके माननेमें विरोध आता है। अतएव ऋजुसूत्रनयकी दृष्टिसे उत्पाद भी निर्हेतुक होता है यह सिद्ध हो जाता है। १९३. तथा इस नयकी दृष्टिसे विशेषण-विशेष्यभाव भी नहीं बनता है । उसका स्पष्टीकरण इसप्रकार है-भिन्न दो पदार्थों में तो विशेषण-विशेष्यभाव बन नहीं सकता है, क्योंकि भिन्न दो पदार्थों में विशेषण-विशेष्यभावके मानने पर अव्यवस्थाकी आपत्ति प्राप्त होती है। अर्थात् जिन किन्हीं दो पदार्थों में भी विशेषणविशेष्यभाव हो जायगा। उसीप्रकार अभिन्न दो पदार्थों में भी विशेषणविशेष्यभाव नहीं बन सकता है, क्योंकि अभिन्न दो पदार्थोंका अर्थ एक पदार्थ ही होता है और एक पदार्थमें विशेषण-विशेष्यभावके माननेमें विरोध आता है। तथा इस नयकी दृष्टिसे सर्वथा अभिन्न दो पदार्थों में संयोगसम्बन्ध अथवा समवाय सम्बन्ध भी नहीं बनता है, क्योंकि जो सर्वथा एकपनेको प्राप्त हो गये हैं और इसलिये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001407
Book TitleKasaypahudam Part 01
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1944
Total Pages572
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Karma, H000, & H999
File Size14 MB
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