________________
प्रस्तावना
कथन प्रारम्भ करते हैं। इस गाथाके पहले 'एत्तो सुत्तसमोदारों' यह चूर्णिसूत्र है जो बतलाता है कि आगे अधिकारसंबंधी गाथासूत्रका अवतार होता है। उसके बाद उक्त गाथासूत्र है। उस गाथासूत्र पर पहला चूर्णिसूत्र है-'एदिस्से गाहाए पुरिमद्धस्स विहासा कायव्वा ।' अर्थात् इस गाथाके पूर्वार्द्धकी विभाषा करना चाहिये । सूत्रसे सूचित अर्थक विशेष विवरण करनेको विभाषा कहते हैं। इस प्रकार गाथाके पूर्वार्द्धका व्याख्यान करनेका विधान करके चूर्णिसूत्रकार आगे उसका व्याख्यान प्रारम्भ करते हैं। उनकी व्याख्यान शैलीका प्रायः यही क्रम है । वे पहले गाथासूत्रोंका अवतार करते हैं उसके बाद उनका व्याख्यान करते हैं। इसपर और भी प्रकाश डालनेके लिये आगेके अधिकारोंपर दृष्टि डालना जरूरी है।
बन्धक नामके अधिकारको लीजिये । इसके प्रारम्भका चूर्णिसूत्र है-'बंधगेत्ति एदस्स वे अणिओगद्दाराणि तं जहा-बंधो च संकमो च।' इसके द्वारा चूर्णिसूत्रकार बन्धक अधिकारके प्रारम्भ होनेकी तथा उसके अन्तर्गत अनुयोगद्वारोंकी सूचना करके आगे लिखते हैं-'एत्थ सुत्तगाहा' इसके बाद सूत्रगाथा आजाती है। उसके बाद गाथासे सूचित होनेवाले समुदायार्थका कथन करके 'पदच्छेदो तं जहा' लिखकर पदच्छेदके द्वारा गाथाके प्रत्येक अंशका व्याख्यान शुरू हो जाता है। इस अधिकारका मुख्य वर्णनीय विषय है संक्रम। अतः चूर्णिसूत्रकार संक्रमका वर्णन प्रारम्भ करनेके पहले उसके प्रकृत अर्थका ज्ञान करानेके लिये पांच उपक्रमोंका कथन करते हैं। और यह बतलाकर कि यहां प्रकृतिसंक्रमसे प्रयोजन है वे लिखते हैं—'एत्थ तिण्णि सुत्तगाहामो हवंति, तं जहा।' अर्थात् प्रकृतिसंक्रमके प्ररूपणमें तीन सूत्रगाथाएं हैं जो इस प्रकार हैं। उसके बाद गाथाएं आती हैं और उनके बाद वे पुनः लिखते हैं—'एदाओ तिण्णि गाहाओ पयडिसंकमे । एदासिं गाहाणं पदच्छेदो। तं जहा।' अर्थात् ये तीन गाथाएं प्रकृतिसंक्रम अनुयोगद्वार में हैं, और इन गाथाओंका पदच्छेद-अवयवार्थ इस प्रकार है। अर्थ कह चुकनेके बाद चूर्णिसूत्र आता है-'एस सुत्तफासो।' जो इस बात की सूचना देता है कि यहां तक सूत्रगाथाओंके अवयवार्थका विचार किया। इस विवरणसे पाठक जान सकेंगे कि चूर्णिसूत्रकारकी व्याख्यानशैली कितनी क्रमबद्ध और स्पष्ट है। गाथासूत्रोंके बिना भी पाठक यह जान सकता है कि कहां पर कौन गाथा है और किस गाथाका कौन अर्थ है ? तथा गाथाके किस किस पदसे क्या क्या अर्थ लिया गया है ?
अन्तिम पन्द्रहवें अधिकारमें सबसे अधिक गाथाएं हैं और उनमें कुछ सूत्रगाथाएं हैं और कुछ उनकी भाष्यगाथाएं हैं। चूर्णिसूत्रकारने प्रत्येक सूत्रगाथा और उससे सम्बद्ध भाष्यगाथाओंका निर्देश जिस क्रमबद्ध शैलीसे करके उनका व्याख्यान किया है उससे उनकी रुचिकर व्याख्यानशैलीपर सुन्दर प्रकाश पड़ता है। ___कसायपाहुडका परिचय कराते समय हम यह लिख आये हैं कि उसकी तेरहवीं और चौदहवीं गाथामें ग्रन्थकारने स्वयं ही कसायपाहुडके अधिकारोंका निर्देश कर दिया है। और चूर्णिसूत्रमें यह भी बतला दिया है कि किस अधिकारमें कितनी गाथाएँ हैं, फिर भी चूर्णिअधिकार सूत्रकारने जो अधिकार निर्धारित किये हैं वे कसायपाहुडमें निर्दिष्ट अधिकारोंसे निर्देश कुछ भिन्न हैं। कसायपाहुडमें अधिकारोंका निर्देश इस प्रकार किया है
"पेज्जदोसविहत्ती ठिदि-अणुभागे च बंधगे चे य ।
वेदग-उवजोगे वियचउठाण-वियंजणे चे य॥१३॥ (१) "सुत्तेण सूचिदत्थस्स विसेसियूण भासा विहासा विवरणं ति वुत्तं होदि।" कसायपा० प्रे० का० पृ० ३११९ ।
३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org