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________________ १६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पेज्जदोसविहत्ती ? अर्थाधिकार बतला कर भी गुणधरके वचनोंकी अवहेलना नहीं की है। ऊपर तीन प्रकारसे सूचित अधिकारोंका कोष्ठक नीचे दिया जाता है। वह निम्नप्रकार है गुणधर भट्टारकके मतसे | आ० यतिवृषभके मतसे ___ अन्य प्रकारसे १ पेजदोषविभक्ति | पेज्जदोष पेज्जदोष २ स्थितिविभक्ति प्रकृति, स्थिति, अनुभाग, प्रकृतिविभक्ति प्रदेश, झीणाझीण और स्थित्यंतिक ३ अनुभागविभक्ति | बन्ध (अकर्मबंध) स्थितिविभक्ति ४ बन्ध ( अकर्मबन्ध )| संक्रमण (कर्मबन्ध) अनुभागविभक्ति अथवा प्रदेशविभक्ति, झीणाझीण और स्थित्यन्तिक ५ संक्रमण ( कर्मबन्ध ) | उदय (कर्मोदय) प्रदेशविभक्ति, झीणाअथवा बन्धक झीण व स्थित्यन्तिक ६ वेदक उदीरणा (अकर्मोदय) बन्धक ७ उपयोग उपयोग वेदक ८ चतुःस्थान चतुःस्थान उपयोग ९ व्यंजन व्यंजन चतुःस्थान १० दर्शनमोहोपशामना दर्शनमोहोपशामना व्यंजन ११ दर्शनमोहक्षपणा दर्शनमोहक्षपणा सम्यक्त्व १२ संयमासंयमलब्धि देशविरति देशविरति १३ चारित्रलब्धि चारित्रमोहोपशामना संयम १४ चारित्रमोहोमशामना | चारित्रमोहक्षपणा | चारित्रमोहोपशामना १५ चारित्रमोहक्षपणा | अद्धापरिमाणनिर्देश चारित्रमोहक्षपणा गुणधर भट्टारकके अभिप्रायानुसार प्रकृति विभक्तिका या तो पेज्जदोष विभक्तिमें या स्थिति और अनुभाग विभक्तिमें अन्तर्भाव हो जाता है। तथा प्रदेशविभक्ति, झीणाझीण और स्थित्यन्तिक इन तीनोंका या तो स्थितिविभक्ति और अनुभाग विभक्तिमें अन्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001407
Book TitleKasaypahudam Part 01
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1944
Total Pages572
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Karma, H000, & H999
File Size14 MB
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