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________________ प्रस्तावना इन्द्रनन्दिने अपने श्रुतावतारमें किया है, क्योंकि उनमेंसे उच्चारणावृत्ति, और वप्पदेवकी उच्चारणाका उल्लेख तो जयधवलाकारने नाम लेकर किया है । रह जाती हैं शामकुण्डाचार्य की पद्धति और तुम्वुलूराचार्य की कनड़ी टीका। सो जगह जगह इन्हीं दोनों व्याख्यानकारोंका उल्लेख 'अण्णे वक्खाणाइरिया' पदसे किया जाना संभव प्रतीत नहीं होता। अतः कषायप्राभृत और चूणिसूत्रपर कुछ अन्य व्याख्याएं भी थीं. ऐसा प्रतीत होता है। यह महती टीका इसी संस्करणमें मुद्रित है अतः उसका विस्तृत परिचय आगे पृथक जयधवला रूपसे कराया गया है। इस प्रकार यह मूलग्रन्थ कसायपाहुड का परिचय है। आगे उसके वृत्ति ग्रन्थ चूर्णिसूत्रका परिचय कराया जाता है। २ चूर्णिसूत्र आचार्य इन्द्रनन्दिने कषायप्राभृतपर रचे गये वृत्तिसूत्रोंमेंसे जिन वृत्तिसूत्रोंका सर्व प्रथम उल्लेख किया है वे आचार्य यतिवृषभके द्वारा रचे गये चूर्णिसूत्र ही हैं। आचार्य इन्द्रनन्दिने उन्हें चूर्णिसूत्र कहा है। जयधवलाकार भी अपनी जयधवला टीकामें स्थान स्थानपर चूर्णिनाम सूत्रके नामसे उनका उल्लेख करते हैं । धवलामें भी उन्होंने इसी नामसे उनका उल्लेख किया है। किन्तु जयधवलामें जो चूर्णिसूत्र पाये जाते हैं उनमें हमें यह नाम नहीं मिल सका। हो सकता है कि चूर्णिसूत्रोंकी जो प्रति रही हो उसमें यह नाम दिया हो, क्योंकि यतिवृषभके दूसरे ग्रन्थ तिलोयपरणत्तिके अन्त में यह नाम दिया है और उसके आधारपरसे यह कहा जा सकता है कि ग्रन्थकारने ही अपने वृत्तिसूत्रोंको चूर्णिसूत्र नाम दिया था। किन्तु यह नाम क्यों दिया गया? इस बारेमें कोई उल्लेख हमारे देखनेमें नहीं आया । श्वेताम्बर आगमोंपर भी चूर्णियां पाई जाती हैं और इस तरह यह नाम आगमिकपरम्परामें टीका-विशेषके अर्थमें व्यवहृत होता आया है ऐसा प्रतीत होता है। ____जयधवलाकारके अनुसार जिसकी शब्द रचना संक्षिप्त हो और जिसमें सूत्रके अशेष अर्थका संग्रह किया गया हो ऐसे विवरणको वृत्तिसूत्र कहते हैं। वृत्तिसूत्रका यह लक्षण चूर्णि सूत्रोंमें अक्षरशः घटित होता है। उनकी शब्दरचना संक्षिप्त है इस बातका समर्थन रचना शैली इसीसे होता है कि उनपर उच्चारणाचार्यको उच्चारणावृत्ति बनानेकी आवश्यकता प्रतीत हुई और जयधवलाकारको उनका विशेष खुलासा करनेके लिए जगह जगह उच्चारणका अवलम्बन लेना पड़ा। इसे ही यदि दूसरे शब्दोंमें कहा जाय तो यूं कहना होगा कि चूर्णिसूत्रकारने छ हजार ग्रन्थ परिमाणके अन्दर जो कुछ कहा था उसका व्याख्यान जयधवलाके रूपमें ६० हजारमें समाया अर्थात् जिस बातके कहनेके लिए दस शब्दोंकी आवश्यकता थी उसे उन्होंने एक ही शब्दसे कह दिया। गाथा सूत्रोंके अशेष अर्थका संग्रह भी उनमें किया गया है । और यह बात इसीसे सिद्ध है कि कसायपाहुड और चूर्णिसूत्रोंके व्याख्याता जयधवलाकार, जिन्होंने वृत्तिसूत्रका उक्त लक्षण लिखा है, चूणिसूत्रोंको स्वयं वृत्तिसूत्र कहते हैं । यह भी संभव है कि चूणिसूत्रोंमें उक्त बातें देखकर ही उन्होंने वृत्तिसूत्रका उक्त लक्षण किया हो । अस्तु, जो कुछ हो, पर इतना निश्चित है कि चूर्णिसूत्रोंकी रचनाशैली अति संक्षिप्त और अर्थपूर्ण है और उनका रहस्य जयधवलाकार श्री वीरसेन स्वामी जैसे बहुश्रुत विद्वान ही हृदयंगम कर सकते हैं। उदाहरणके लिये, चूर्णि (१) "सचुण्णिसुत्ताणं विवरणं कस्सामो। . चुण्णिसुत्तस्स आदीए.."। कसायपा० १०५ (२) “कथं णव्वदे ? कसायपाहुडचुण्णिसुत्तावो।" धवला (आ०) प० ११२२ उ०। (३) “चुण्णिसरूवत्थक्करणसरूवपमाण होवि किं जं तं ॥५१॥" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001407
Book TitleKasaypahudam Part 01
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1944
Total Pages572
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Karma, H000, & H999
File Size14 MB
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