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गा० २ ]
अत्थाहियारणिदेसो दस अत्थाहियारा । एदेसु अत्थाहियारेसु एक्केकस्स अस्थाहियारस्स वा पाहुडसण्णिदा वीस वीस अस्थाहियारा । तेसि पि अत्थाहियाराणं एकेकस्स अत्थाहियारस्स चउवीसं चउवीसं अणिओगद्दारसण्णिदा अत्थाहियारा । एदस्स पुण कसायपाहुडस्स पयदस्स पण्णारस अत्थाहियारा।
___ ११७. संपहि पण्णारसहमत्थाहियाराणं णामणिद्देसेण सह 'एकेक्कम्मि अत्थाहियारे एत्तियाओ एत्तियाओ गाहाओ होंति' ति भणंतो गुणहरभडारओ 'असीदिसदगाहाहि पण्णारसअत्थाहियारपडिबद्धाहि कसायपाहुडं सोलसपदसहस्सपठिदं भणामि' त्ति पइज्जासुत्तं पठदि
गाहासदे असीदे अत्थे पण्णरसधा विहत्तम्मि । वोच्छामि सुत्तगाहा जयि गाहा जम्मि अत्थम्मि ॥२॥
१११८. सोलसपदसहस्सेहि वे कोडाकोडि-एक्कसहिलक्ख-सत्तावण्णसहस्स-बेसदबाणउदिकोडि-बासडिलक्ख-अट्ठसहस्सक्खरुप्पण्णेहि जं भणिदं गणहरदेवेण इदंभूदिणा कसायपाहुडं तमसीदिसदगाहाहि चेव जाणावेमि त्ति 'गाहासदे असीदे' त्ति पढमपइज्जा प्रत्येक अर्थाधिकारके बीस बीस अर्थाधिकार हैं जिनका नाम प्राभृत है। उन प्राभृतसंज्ञावाले अर्थाधिकारोंमेंसे प्रत्येक अर्थाधिकारके चौबीस चौबीस अधिकार हैं, जिनका नाम अनुयोगद्वार है । किन्तु यहाँ प्रकरणप्राप्त इस कषायप्राभृतके पन्द्रह अर्थाधिकार हैं।
विशेषार्थ-यद्यपि पांचवें ज्ञानप्रवाद पूर्वकी दसवीं वस्तुके तीसरे पेजपाहुडके चौबीस अनुयोगद्वार हैं। परन्तु उस पेजपाहुडके आधारसे गुणधर भट्टारकने एक सौ अस्सी गाथाओं में जो यह पेजपाहुड निबद्ध किया है । इसके पन्द्रह ही अर्थाधिकार हैं।
११७. अब पन्द्रह अर्थाधिकारोंके नामनिर्देशके साथ 'एक एक अर्थाधिकारमें इतनी इतनी गाथाएँ पाई जाती हैं' इसप्रकार प्रतिपादन करते हुए गुणधर भट्टारक 'सोलह हजार पदोंके द्वारा कहे गये कषायप्राभृतका मैं पन्द्रह अर्थाधिकारोंमें विभक्त एकसौ अस्सी गाथाओंके द्वारा प्रतिपादन करता हूं' इस प्रकार प्रतिज्ञासूत्रको कहते हैं
पन्द्रह प्रकारके अर्थाधिकारों में विभक्त एकसौ अस्सी गाथाओंमें जितनी सूत्रगाथाएँ जिस अर्थाधिकारमें आई हैं उनका प्रतिपादन करता हूं ॥ २॥
१११८. दो कोड़ाकोड़ी, इकसठ लाख सत्तावन हजार दो सो बानबे करोड़, और बासठ लाख आठ हजार अक्षरोंसे उत्पन्न हुए सोलह हजार मध्यम पदोंके द्वारा इन्द्रभूति गणधर देवने जिस कषायप्राभृतका प्रतिपादन किया उस कषायप्राभृतका मैं (गुणधर आचार्य) एक सौ अस्सी गाथाओंके द्वारा ही ज्ञान कराता हूं, इस अर्थके ज्ञापन करनेके लिये गुणधर
(१)-दाराणि सण्णि -अ, आ० ।
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