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________________ فوف गा०] पाणावायप्पवादपुव्वेसरूवणिरूवणं संबद्धमढंगमाउव्वेयं भणदि त्ति वुत्तं होदि। काणि आउव्वेयस्स अंहंगाणि ? वुच्चदेशालाक्यं कायचिकित्सा भूततन्त्रं शल्यमगदतन्त्रं रसायनतन्त्रं बालरक्षा बीजवर्द्धनमिति आयुर्वेदस्य अष्टाङ्गानि । बिधि लगा लेना चाहिये । किन निषेकोंका उत्कर्षण होता है और किनका नहीं ? उत्कर्षणके विषयमें अतिस्थापना और निक्षेपका प्रमाण क्या है ? जिसका पहले अपकर्षण हो गया है उसका यदि उत्कर्षण हो तो अधिकसे अधिक कितना उत्कर्षण होता है। इत्यादि विशेष विवरण लब्धिसार आदि ग्रन्थोंसे जान लेना चाहिये । यहाँ केवल आयुकर्ममें उत्कर्षण कैसे संभव है इतना दिखाना मात्र प्रयोजन होनेसे अधिक नहीं लिखा है। प्राणावायप्रवाद पूर्व हाथी, घोड़ा और मनुष्यादिसे संबन्ध रखनेवाले अष्टांग आयुर्वेदका कथन करता है यह उपर्युक्त कथनका तात्पर्य समझना चाहिये। शंका-आयुर्वेदके आठ अंग कौनसे हैं ? समाधान-शालाक्य, कायचिकित्सा, भूततन्त्र, शल्य, अगदतन्त्र, रसायनतन्त्र, बालरक्षा, और बीजवर्द्धन ये आयुर्वेदके आठ अंग हैं। विशेषार्थ-आयुर्वेद शास्त्रमें रोगोंके निदान, उनके शान्त करनेकी विधि, प्राणियोंके जीवनकी रक्षाके उपाय और सन्तति उत्पन्न करने के नियम आदि बतलाये गये हैं। इसके शालाक्य आदि आठ अंग हैं। शलाकाकर्मको शालाक्य कहते हैं और इसके कथन करनेगले शास्त्रको शालाक्यतन्त्र कहते हैं। इसमें जिन रोगोंका मुँह ऊपरकी ओर है ऐसे कान, नाक, मुँह, और चक्षु आदिके आश्रयसे स्थित रोगोंके उपशमनकी विधि बतलाई गई है। अतीसार, रक्तपित्त, शोष, उन्माद, अपस्मार, कुष्ठ, मेह और ज्वरादि रोगोंसे ग्रस्त शरीरकी चिकित्सा कायचिकित्सा कहलाती है। तथा जिसमें इसका कथन किया गया है उसे कायचिकित्सा तन्त्र कहते हैं। भूत, यक्ष, राक्षस और पिशाच आदि जन्य बाधाके निवारणका कथन करनेवाला शास्त्र भूततन्त्र कहा जाता है। इसमें सभी प्रकारके देवोंके शान्त करनेकी विधि बतलाई गई है। जिसमें शल्यजन्य बाधाके दूर करनेके उपाय बतलाये गये हैं वह शल्यतन्त्र है। इसमें कांटा आदिके शरीरमें चुभ जाने पर उसके निकालनेकी विधि बतलाई गई है। जिसमें विषमारणकी विधि बतलाई गई है वह अगदतन्त्र है। इसमें सर्प, विच्छू, चूहा आदिके काट लेने पर शरीरमें जो विष प्रविष्ट हो जाता है उसके नाश करनेकी विधि तथा विषके मारण आदि करनेकी विधि बतलाई गई है । अगदतंत्रका दूसरा नाम जंगोलीतन्त्र भी है। जिसमें बुद्धि, आयु आदिकी वृद्धिके कारणभूत नाना प्रकारके रसायनोंकी प्राप्तिका उपाय बतलाया गया है वह रसायनतंत्र है। बालकोंकी रक्षा (१) "शल्यं शालाक्यं कायचिकित्सा भूतविद्या कौमारभृत्यमगदतन्त्रं रसायनतन्त्रं वाजीकरणतन्त्रमिति ।"-सुश्रुत० पृ० १। “अट्ठविधे आउवेदे पण्णत्ते तं जहा-कुमारभिच्च कायतिगिच्छा सालाती सल्लहत्ता जंगोली भूतवेज्जा खारतते रसायणे ।"-स्था० सू० ६११ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001407
Book TitleKasaypahudam Part 01
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1944
Total Pages572
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Karma, H000, & H999
File Size14 MB
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