SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 240
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गा० ] सुदक्खंधपमाणपरूवणं "अट्ठावण्णसहस्सा दोणि य छप्पण्णमेतकोडीओ। तेसीदिसदसहस्सं पदसंखा पंच सुदणाणे ॥३६॥" ११२८३५८००५। ७४. अंवसेसक्खरपमाणमट्ठकोडीओ एयं सदसहस्सं अहसहस्स(सं)पंचहत्तरिसैमहियसदमेत्तं होदि ८०१०८१७५ । पुणो एदम्हि बत्तीसक्खरेहि भागे हिदे पंचबीसलक्ख-तिण्णिसहस्स-तिण्णिसयं सासीदं च चोदसपइण्णयाणं पमाणपद-गंथपमाणं होदि एगक्खरूणगंथद्धं च २५०३३८०, एसो खंडगथो ३ । $ ७५. आयरिंगे अट्ठारहपदसहस्साणि १८००० । सूदयदे छत्तीसपदसहस्साणि ३६००० । हाणम्मि बादालीसपदसहस्साणि ४२०००। समवायम्मि चउसहिसहस्साहियएगलक्खमेत्तपदाणि १६४००० । वियाहपण्णत्तीए अट्ठावीससहस्साहिय "सकल श्रुतज्ञानमें पदोंकी संख्या छप्पनके दुगने अर्थात् एकसौ बारह करोड़, तेरासी लाख, अट्ठावन हजार, पाँच ११२८३५८००५ पदप्रमाण है ॥३६॥" ६ ७४. बारह अंगोंमें निबद्ध अक्षरोंसे अतिरिक्त अक्षरोंका प्रमाण आठ करोड़ एक लाख आठ हजार एकसौ पचहत्तर ८०१०८१७५ है। अनन्तर इन ८०१०८१७५ अक्षरोंको बत्तीस अक्षरोंसे भाजित करने पर चौदह प्रकीर्णकोंके श्लोकोंका प्रमाण पच्चीस लाख तीन हजार तीनसौ अस्सी होता है और एक श्लोकके प्रमाणके आधेमेंसे एक अक्षर कम कर देने पर जितना शेष रहे उतना होता है। गिनतीमें चौदह अङ्गबाटोंमें २५०३३८० पूर्ण श्लोक और १५ खण्ड श्लोक समझना चाहिये । $ ७५. आचाराङ्गमें अठारह हजार १८००० पद हैं। सूत्रकृताङ्गमें छत्तीस हजार ३६००० पद हैं। स्थानाङ्गमें बयालीस हजार ४२००० पद हैं । समवायाङ्गमें एक लाख चोंसठ हजार १६४००० पद हैं । व्याख्याप्रज्ञप्तिमें दो लाख अट्ठाईस हजार २२८००० पद (१) 'बारुत्तरसयकोडी तेसीदी तह य होंति लक्खाणं । अट्ठावण्णसहस्सा पंचेव पदाणि अंगाणं॥" -गो० जीव० गा० ३५० । ध० आ० ५० ५४६ । (२) "जनकनजयसीम बाहिरे वण्णा।"-गो० जीव० गा० ३६० ॥ “पण्णत्तरि वण्णाणं सयं सहस्साणि होदि अद्वैव । इगिलक्खमट्ठकोडी पइण्णयाणं पमाणं हो" -अंगप० १३ ॥ (३)-समाहियासद-अ०, आ०। (४) "पंचविंशतिलक्षाश्च त्रयस्त्रिंशत्शतानि च। अशीतिः श्लोकसंख्येयं वर्णा: पंचदशात्र च ॥"-हरि० १०।१२८। (५) एतेषां पदसंख्या हरि० १०।२७-४६, गो. जीव० ३५७-३५९, अंगप० गा० १५, २०, २३, २९, ३६, ३९, ४५, ४८, ५२, ५६, ६८, ७२, इत्यादिषु द्रष्टव्याः । “अट्ठरसपयसहस्सा आयारे दुगुणदुगणसेसेसु।"-अ० रा० (अंगपविट्ठ सद्द ) विचार० गा० ३४६। “आयारे अट्ठारस पयसहस्साणि (४५) सूअगडे छत्तीसं पयसहस्साणि (४६) ठाणे बावत्तरि पयसहस्सा (४७) समवाए चोआले सयसहस्से (४८) विवाहे दो लक्खा अट्ठासीइं पयसहस्साई (४९) नायाधम्मकहासु संखेज्जा पयसहस्सा (५०) उवासगदसासु संखेज्जा पयसहस्सा (५१) अंतगडदसासु संखेज्जा पयसहस्सा (५२) अणुत्तरोववाइअदसासु संखेज्जाइं पयसहस्साई (५३) पण्हवागरणेसु संखेज्जाई पयसहस्साई (५४) विवागसुए संखिज्जाइं पयसहस्साई (५५) दिठिवाए संखेज्जाइं पयसहस्साई (५६) "-नन्दी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001407
Book TitleKasaypahudam Part 01
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1944
Total Pages572
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Karma, H000, & H999
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy