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didilash
sardarok
सिरि-जइवसहाइरियविरइय-चुण्णिसुत्तसमण्णिदं
सिरि-भगवंतगुणहरभडारोवइ8
क साय पा हु डं
. तस्स
सिरि-वीरसेणाइरियविरइया टीका
जयधवला
तत्थ
पेजदोसविहत्ती णाम पढमो अत्याहियारो
जयइ धवलंगतेएणाऊरिय-सयलभुवणभवणगणो ।
केवलणाणसरीरो अणंजणो णामओ चंदो ॥१॥ अपने धवल शरीरके तेजसे समस्त भुवनोंके भवनसमूहको व्याप्त करनेवाले, केवलज्ञानशरीरी और अनंजन अर्थात् कर्मकलंकसे रहित चन्द्रप्रभ जिनदेव जयवंत हों ॥१॥
विशेषार्थ- चन्द्रमा अपने धवल शरीरके मन्द आलोकसे मध्यलोकके कुछ ही
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