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________________ १२२ जयधवलासहित कषायप्राभृत कथन १३९-१४८ क्षपणाको एक अधिकार मानते हैं आयुर्वेदके पाठ अंग उनके मतका निराकरण कसायपाहुड स्वसमयका ही कथन करता है प्रद्धापरिमाणनिर्देश नामका पन्द्रहवाँ अर्थाइसमें हेतु धिकार है इसका निराकरण १६२ प्रकृत कसायपाहुडके पन्द्रह अर्थाधिकारों की संयमासंयमलब्धि और चारित्रलब्धि ये दो प्रतिज्ञा १४९ । स्वतन्त्र अधिकार है इसका उल्लेख १६३ ज्ञानके पांच भेदोंमेंसे श्रुतज्ञानके भेद-प्रभेद चारित्रमोहकी क्षपणा नामक अधिकारकी बतलाते हुए प्रकृत कसाय पाहुड़के योनि २८ गाथाओंमेंसे कितनी सूत्रगाथाएँ हैं स्थानका कथन १४९ और कितनी नहीं इसका उल्लेख दूसरी गाथाके द्वारा कसायपाहुड़के पन्द्रह | सभाष्यगाथा इस अर्थमें जहाँ भाष्यगाथापदअर्थाधिकारोंमेंसे किस अधिकारमें कितनी आता है वहाँ 'स' का लोप किस नियमसे गाथाएं हैं इसके कथन करने की | होता है इसका उल्लेख १६९ प्रतिज्ञा १५१-१५४ दसवीं गाथाके द्वारा सूत्रगाथा और भाष्यमध्यमपद की अपेक्षा सोलह हजार पदप्रमाण गाथाओंके कहनेकी प्रतिज्ञा १७० मुख्य कसायपाहुडसे प्रकृत कसायपाहुडका सूत्रका लक्षण १७१ एकसौ अस्सी गाथाओंमें उपसंहार ग्यारहवीं और बारहवीं गाथा द्वारा किस किया, इस पहली प्रतिज्ञाका उल्लेख १५१ अर्थमे कितनी भाष्यगाथाएं हैं इसका मुख्य कसायपाहुडके अनेक अधिकार हैं पर निर्देश १७१-१७७ प्रकृत कसायपाहुडके कुल १५ अर्थाधि- | तेरहवीं और चौदहवीं गाथा द्वारा कार हैं इस दूसरी प्रतिज्ञाका उल्लेख १५२ कसायपाहुडके पन्द्रह अर्थाधिकारोंका जिस अधिकारमें जितनी गाथाएं हैं उन्हें नामनिर्देश १७७-३२९ कहता हूँ इस तीसरी प्रतिज्ञाका उल्लेख , कसायपाहुडमें मोहनीय कर्मका कथन है अन्य गाथासूत्रका अर्थ सात कर्मोका नहीं, इसका उल्लेख १७९ सूत्रका लक्षण और प्रकृत कसायपाहुडकी कसायपाहडमें आई हई २३३ गाथाओंका गाथाओंमें सूत्रत्वकी सिद्धि १५३ __ जोड़ १८ तीसरी गाथाके द्वारा प्रारंभके पांच अर्था- कसायपाहुडमे २३३ गाथाओंके रहते हुए धिकारोंका नामनिर्देश १५५–१५८ | । १०८ गाथाओंकी प्रतिज्ञा करनेका कारण १८२ प्रारम्भके पांच अधिकारोंके विषयका कथन प्रकृतिसंक्रमके विषयमें आई हुई ३५ गाथाएं करनेके लिये जो तीन गाथाएं आई है १०८ गाथाओंके सम्मिलित क्यों नहीं उनका उल्लेख १५६ की गई इसका खुलासा १८३ गाथासूत्रके आधारसे पांच अर्थाधिकारों के १८० गाथाअोंसे अतिरिक्त शेष गाथाएं नामों का उल्लेख नागहस्ति आचार्यकी बनाई हुई है, इस दूसरे प्रकारसे पांच अर्थाधिकारों के नाम १५७ मतका निराकरण १८३ तीसरे प्रकारसे पांच अर्थाधिकारों के नाम , यतिवृषभ स्थविरके मतसे १५ अर्थाधिकारों चौथीसे नौवीं गाथाओंके द्वारा शेष दश का उल्लेख १८४-१९२ अधिकारों के नाम और उनमें से किस अन्य प्रकारसे पन्द्रह अधिकारोंके नाम अर्थाधिकारमें कितनी गाथाएं आई हैं दिखाते हुए भी यतिवृषभ आचार्य गुणधर इसका उल्लेख १५९-१६८ . आचार्यके दोष दिखाने वाले नहीं है इसका जो भाचार्य दर्शनमोहकी उपशमना और समर्थन १८५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001407
Book TitleKasaypahudam Part 01
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1944
Total Pages572
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Karma, H000, & H999
File Size14 MB
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