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________________ विषयसूची ६९ वेदनीयकर्म घातिकर्मोके विना फल नहीं | मध्यमपदके अक्षर देता इसका समर्थन, समस्त श्रुतके पद कवलाहार विचार अंगबाह्यके अक्षरोंकी गणना वर्द्धमान जिनके अतिशय और द्रव्यागमकी द्वादशांगमें पदोंका विभाग प्रमाणता मूल कसायपाहुड, प्रकृत कसायपाहुड और वर्धमान जिनने उपदेश कहां पर दिया चूणिसूत्रोंके पदोंकी संख्या इसका विधान वक्तव्यताके तीन भेद वर्द्धमान जिनने किस कालमें उपदेश दिया समस्त श्रुतमें तदुभयवक्तव्यता है, इसका इसका विधान तीर्थोत्पत्तिका समय और उल्लेख आयुपरिमाण ७४ | अंगबाह्यके चौदह भेद सामायिक आदि अंगजिन होने के बाद छियासठ दिन तक वर्द्धमान बाह्योंमे स्वसमयका ही कथन है, इसका जिनने उपदेश क्यों नहीं दिया, इसका समर्थन ९७-१२२ कारण सामायिकके चार भेद और उनका स्वरूप अन्य आचार्योंके अभिप्रायसे वर्द्धमान जिनकी चौवीस तीर्थंकर सावध हैं इस शंकाका आयु और उसका समर्थन । विस्तारसे उल्लेख और उसका निराकरण १०० आयुसम्बन्धी उक्त दोनों उपदेशोंमेंसे किसी सुरदुन्दुभि प्रादि बाह्य उपकरणोंके कारण एकको प्रमाण और दूसरेको अप्रमाण कहनेसे तीर्थंकर निरवद्य नहीं हो सकते इस शंकाका बचे रहनेकी सुचना ८१ परिहार १०८ मूलभागप्रमाण होते हुए भी अप्रमाणीभूत नामादि स्तवोंका स्वरूप ११० पुरुष परंपरासे आनेके कारण वह अप्रमाण वन्दनाका स्वरूप और उससे शेष जिन, है, इस शंकाका परिहार ८२ जिनालयोंकी प्रासादना नहीं होती इसका जिस आचार्य परंपरासे द्रव्यागम आया है समर्थन १११ उसका उल्लेख ८३ प्रतिक्रमणके भेद और उनका खुलासा समस्त अंग और पूर्वोका एकदेश गुणधर प्रत्याख्यान और प्रतिक्रमणमें भेद ११५ प्राचार्यको ग्राम्नायक्रमसे मिला इसका प्रौत्तमस्थानिकमें प्रतिक्रमणका समर्थन उल्लेख विनयके पाँच भेद ११७ गुणधर आचार्यने प्रकृत कसायपाहुडको किस कृतिकर्मका स्वरूप ११८ आगममेंसे उपसंहृत किया, इसका कथन " दशवकालिक आदि शेष अंगबाह्योंके विषयका प्रकृत कसायपाहुड किस क्रमसे आचार्य प्रार्य १२० मंक्षु और नागहस्तिको मिला, इसका उल्लेख ८८ आचारांग आदि ग्यारह अंगोंके विषयका यतिवृषभ स्थविरने उक्त दोनों प्राचार्योंके कथन १२२-१३२ पादमूलमें कसायपाहुडको सुना और दिव्यध्वनिका स्वरूप परिकर्मके पांच भेद अनन्तर चूर्णिसूत्र बनाये इसका उल्लेख " __ और उनके विषयका कथन १३२ चुंकि ये सब आचार्य प्रमाण हैं, अतः द्रव्यागम सूत्रके विषयका कथन प्रमाण है, इसका समर्थन तीनसौ त्रेसठ मतोंका उल्लेख द्रव्यश्रतमें संख्याप्रमाणकी सिद्धि और द्रव्य- प्रथमानुयोगके विषयका कथन श्रुतके समस्त अक्षरोंका उल्लेख पूर्वगतके विषयका कथन श्रतज्ञानके पदोंकी संख्या. पदके भेद और चूलिकाके पांच भेद और उनके विषयका कथन १३९ उनका स्वरूप ९० | उत्पादपूर्व आदि चौदह पूर्वोके विषयका कथन १३४ १३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001407
Book TitleKasaypahudam Part 01
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1944
Total Pages572
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Karma, H000, & H999
File Size14 MB
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